Daily Routine?
आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ दिनचर्या व ऋतुचर्या कैसी होनी चाहिए?
आयुर्वेद अस्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ बनाने के साथ-साथ स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाये रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।
आयुर्वेद स्वस्थ जीवन जीने के उपायों का खजाना है। दिनचर्या एवं ऋतुचर्या (Daily Routine and Seasonal Routine) भी उन्ही उपायों में शामिल है।
आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या का अर्थ (Daily routine according to Ayurveda in Hindi) -
आरोग्य (Wellness) की ईच्छा रखने वाले बुद्धिमान व स्वस्थ व्यक्ति द्वारा प्रतिदिन किये जाने वाले कार्यों व सदाचरण को "दिनचर्या" daily routine कहा जाता है।
स्वस्थ दिनचर्या कैसी होनी चाहिए (dincharya kaisi honi chahiye - daily routine in hindi) -
- सूर्योदय से पहले ब्रह्म-मुहूर्त में उठना: यह समय अध्ययन, योग, ध्यान आदि के लिए उपयुक्त होता है। ऐसा करने से स्वास्थ्य व आयु में वृद्धि होती है, सकारात्मक उर्जा का संचार होता है, व मन प्रसन्न रहता है।
- उषःपान करना: ताम्रपात्र में रखा स्वच्छ जल पीना।
- मल-मुत्रोत्सर्जन करना।
- धावन कार्य: दान्तुन (मंजन), मुख-जीभ साफ़ करना, एवं शीतल जल से आँखें धोना।
- कवल / गंडूष: गरम पानी या औषधीय क्वाथ (नीम, त्रिफला आदि) से गरारे (Gargle) करना।
- देव-पूजन/ईश-स्मरण: मन की शांति व आत्मबल बढ़ाने के लिए श्रद्धा व विश्वास के अनुरूप अपने इष्ट-देव का नित्य स्मरण करें।
- नस्य: नाक में तिल, सरसों के तैल या गोघृत की दो-दो बूंद डालना ताकि सिर, बाल, नाक, आँख, व कान के रोगों से बचाव हो। इससे नींद अच्छी आती है।
- अभ्यंग: सिर, कान व पैरों की तैल से मालिश करना। इससे थकान दूर होती है, बल बढ़ता है, त्वचा निर्मल व झुर्रियों-रहित होती है, रूखापन दूर होता है, तथा बुढ़ापा जल्दी नहीं आता है।
- व्यायाम, योगासन एवं ध्यान: इनसे शरीर में हल्कापन आता है, मांसपेशियां मजबूत होती है, मोटापा व मधुमेह आदि रोगों से बचाव होता है, शरीर की पाचन क्षमता व इम्युनिटी बढ़ती है, तथा मानसिक शांति व ख़ुशी प्राप्त होती है।
- क्षौर कर्म: आवश्यकतानुसार दाढ़ी, सिर के बाल व नाख़ून काटना (संक्रमण में कमी होती है)।
- उद्वर्तन (उबटन): स्नान से पूर्व बेसन, तैल एवं हल्दी का पानी के साथ लेप (पेस्ट) बना कर शरीर पर मलना। इससे त्वचा सुंदर, कोमल व कान्तियुक्त होती है।
- स्नान: व्यायाम के आधे से एक घंटे बाद शीतल, गुनगुने अथवा सुखोष्ण जल से स्नान करना।
- आहार: अपनी प्रकृति (वात, पित्त, कफ), उम्र व ऋतु के अनुसार नियत समय पर नियत मात्रा अनुसार छः रसों (षडरस - मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त, कषाय) से युक्त आहार (संतुलित भोजन) का सेवन करना।
- जीविकोपार्जन: जीविका चलाने के लिए शासन से अनुमत एवं सज्जन लोगों से अनुमोदित व्यवसाय, कृषि या सेवा आदि कार्य करना।
- नींद: रात्रि में 7-8 घंटे शयन करना।
ऋतुचर्या क्या है? -
ऋतुचर्या का मतलब है ऋतु विशेष के अनुसार व्यक्ति द्वारा आहार-विहार करना (पथ्य अपथ्य इन आयुर्वेद)।
षड्ऋतु का अर्थ क्या होता है?
आयुर्वेद के अनुसार भारत एवं भारतीय महाद्वीप में एक वर्ष में छः ऋतुएं होती है जिन्हें षड्ऋतु कहा जाता है, ये हैं - बसंत ऋतु (Spring), ग्रीष्म ऋतु (Summer), वर्षा ऋतु (Rainy season), शरद ऋतु (Autumn), हेमन्त ऋतु (Pre-winter), व शिशिर ऋतु (Winter)।
दिनचर्या एवं ऋतुचर्या का महत्व -
आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ व आदर्श दिनचर्या (daily routine) एवं ऋतुचर्या (seasonal routine) को अपनाकर कोई भी व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है, आरोग्य पा सकता है।
ऋतुचर्या चार्ट (Ritucharya Chart) -
भारत एवं भारतीय महाद्वीप (पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल आदि) में ऋतु के अनुसार भोजन व अन्य करने योग्य कार्य (daily routine according to Vedas in different seasons) इस प्रकार होने चाहिए -
1. वर्षा-ऋतुचर्या (daily routine in rainy season)
वर्षा ऋतु का समय -
जुलाई से अगस्त (श्रावण-भाद्रपद)।
ऋतु-स्वभाव -
पित्त संचय, वात प्रकोप।
वर्षा ऋतु में सम्भावित बीमारियाँ -
वर्षा ऋतु में निम्न रोग हो सकते हैं -
- पेट सम्बन्धी - अग्निदौर्बल्य (जठर रस की कमी, भूख कम लगना - anorexia), कृमिरोग।
- शारीरिक दौर्बल्य, शोथ inflammation।
- रक्त विकार एवं चर्म रोग - कंडू pruritus, पामा eczema, विचर्चिका psoriasis, दद्रु/दाद ring worm।
- जोड़ों में दर्द - वातिकशूल ( आमवात rheumatoid arthritis, सन्धिवात arthritis)।
- नेत्र रोग - नेत्राभिष्यंद conjunctivitis।
- संक्रामक रोग - ज्वर/बुखार, श्लीपद/हाथीपांव Filariasis, मलेरिया, आन्त्रिक ज्वर, अतिसार/दस्त, तथा अन्य जीवाणु या वायरस जनित आगंतुक रोग।
वर्षा ऋतु में देह-प्रकृति -
वात प्रकृति वाले लोगों के लिए यह ऋतुअहितकर है। वात-दोष सही करने के लिए संशोधन बस्ति का प्रयोग करना चाहिए।
Daily routine in the rainy season |
वर्षा ऋतु में पथ्य आहार (वर्षा ऋतु के अनुसार भोजन) -
वर्षा ऋतु में निम्न भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद रहता है -
- अम्लीय, लवणयुक्त, व स्नेहयुक्त भोजन।
- पुराने अनाज या धान (चावल, गेहूँ, जौ आदि) तथा मांस रस (शोरबा)।
- घी, दूध, छाछ, बाजरे या मक्के के आटे की राबड़ी।
- सब्जियां - करेला, लौकी, तुरई, कददू, परवल, बैंगन, मेथी, जीरा, लहसुन, अदरख आदि।
- वर्षा ऋतु में पानी उबाल कर, संशोधित कर या फ़िल्टर करके पिएं।
वर्षा ऋतु में अपथ्य आहार -
वर्षा ऋतु में निम्न भोजन स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं रहता है -
- पचने में भारी आहार - आलू, नये चावल, अरबी, भिन्डी, खट्टा व पुराना दही, बासी भोजन, मांस, मछली आदि।
- मदिरा, अधिक तरल पदार्थ, एवं तालाब-नदी का अपरिष्कृत जल।
वर्षा ऋतु में पथ्य विहार (करने योग्य कार्य) -
- वर्षा से बचते हुए जीविकोपार्जन का कार्य जारी रखें।
- बाहर से आने पर पांवों को अच्छी तरह से धोएं व पोंछें।
- हल्के गर्म तेल से मालिश (अभ्यंग) करें।
- सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें।
वर्षा ऋतु में अपथ्य विहार (क्या नहीं करें) -
- नंगे पैर गीली मिटटी या कीचड़ में नहीं जाएँ।
- शीलनयुक्त जगह पर न रहें।
- दिन में सोयें नहीं, रात में जागें नहीं।
- ओस व खुले में शयन ना करें।
- अधिक व्यायाम व धूप का सेवन नहीं करें।
- तेज हवा व तेज वर्षा में किसी पेड़ के नीचे नहीं रहें।
- गहरे व अज्ञात तालाब, नदी-नालों में स्नान व तैरने की कोशिश नहीं करें।
2. शरद-ऋतुचर्या (daily routine in the autumn season)
शरद ऋतु का समय -
सितम्बर से अक्टूबर (आश्विन-कार्तिक)।
ऋतु-स्वभाव -
पित्त प्रकोप, वात-प्रशम।
शरद ऋतु में सम्भावित बीमारियाँ -
शरद ऋतु में निम्न (पित्त्प्रधान) रोग हो सकते हैं -
- पेट सम्बन्धी - तृषा (polydipsia), छर्दि (vomiting), अम्लपित (acidity), विबन्ध/कब्ज, अजीर्ण (indigestion), अरुचि (anorexia) आदि।
- शिर-शूल (headache), चक्कर आना (dizziness)।
- रक्त व त्वक विकार।
- श्वसन रोग - प्रतिश्याय (जुकाम), वात-श्लैष्मिक ज्वर (इन्फ्लुएंजा), आमान (asthma)।
- अन्य रोग - ज्वर, रक्त-पित (नकसीर), दाह आदि।
शरद ऋतु में देह-प्रकृति -
शरद ऋतु पित्त प्रकृति वाले लोगों के लिए कष्टप्रद होती है।
शरद ऋतु में पथ्य आहार (शरद ऋतु के अनुसार भोजन) -
शरद ऋतु में निम्न भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद रहते हैं -
- मधुर/मीठा, लघु/हलका, शीतल, व तिक्त (bitter or pungent) रस वाले भोजन।
- गेंहूँ, जौ, लाल या साठी चावल।
- घी।
- दाल (मूंग, उड़द) छिलके सहित, एवं शाक-सब्जियां गर्म मसालों रहित।
- फल-सब्जियां - टमाटर, पालक, गोभी, लौकी, तुरई, परवल, मेथी, करेला, मूली, सिंघाड़ा, अंगूर, नारियल, फलों का रस, सूखे मेवे।
- आयुर्वेदिक रसायन - च्यवनप्राश (कवचप्राश), ब्रह्म-रसायन, आमलकी रसायन, वसंत-कुसुमाकर, त्रिफला चूर्ण, निशोथ चूर्ण, अमलतास का गुदा, हरीतकी (हरड), मुनक्का आदि का सेवन चिकित्सक की सलाह से
- प्रातःकाल गर्म पानी के साथ नीम्बू का रस।
शरद ऋतु में अपथ्य आहार -
शरद ऋतु में निम्न भोजन स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं रहता है -
- मैदे से बने, उष्ण/गर्म, तीक्ष्ण, गुरु, विदाही, मसालेदार, तले हुए खाद्य, मांस, मछली, खट्टा दही, क्षार, वसीय व तैलीय खाद्य, वनस्पति घी।
- कंद-शाक जैसे अरबी, आलू।
- अमरुद खाली पेट व अधिक मात्रा में।
- कच्ची ककड़ी व खीरा अधिक मात्रा में व दही के साथ।
- मूंगफली व मक्के के साथ पानी।
- दूषित पानी।
शरद ऋतु में पथ्य विहार (करने योग्य कार्य) -
- सूर्योदय से पहले ब्रह्म-मुहूर्त में उठकर उषःपान व ठन्डे पानी से स्नान।
- प्रातः भ्रमण, नियमित व्यायाम, योगासन, ध्यान।
- तेल की मालिश व शरीर पर चन्दन या मुल्तानी मिट्टी का लेप करें।
- रात्रि में हवादार कक्ष में शयन करें।
शरद ऋतु में अपथ्य विहार (क्या नहीं करें) -
- दिन में ना सोयें, रात में ना जागें, मुंह ढक कर ना सोयें, खुले में ना सोयें।
- पूर्वी हवा, ओस, व धूप से बचें।
- अति सहवास ना करें।
3. हेमन्त-ऋतुचर्या (daily routine in the pre-winter season)
हेमन्त ऋतु का समय -
नवम्बर से दिसम्बर (मार्गशीर्ष-पौष)।
ऋतु-स्वभाव -
वातापित्त - प्रशमन, श्रेष्ठ - शरीरबल, श्रेष्ठ - अग्निबल।
हेमन्त ऋतु में सम्भावित बीमारियाँ -
- श्वास रोग - वात-श्लैष्मिक रोग (इन्फ्लुएंजा), श्वास फूलना (Breathlessness), प्रतिश्याय (जुकाम), मन्थर-ज्वर (Typhoid)।
- वातज रोग - अर्दित Facial Paralysis, पक्षाघात Paralysis, पांवों में बिवाई फटना।
हेमन्त ऋतु में देह-प्रकृति -
हेमन्त ऋतु वातश्लैष्म प्रकृति व शुद्ध या संसृष्ट प्रकृति वाले लोगों के लिए कष्टप्रद होती है।
हेमन्त ऋतु में पथ्य आहार (हेमन्त ऋतु के अनुसार भोजन) -
हेमन्त ऋतु में निम्न भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद रहते हैं -
- मधुर, स्निग्ध ( घी, तैल, चिकनाई-युक्त), लवण-युक्त व उष्ण (गर्म) भोजन।
- नये शालि चावल, मांस का सेवन।
- आयु व ईच्छा के अनुसार बलवर्धक आयुर्वेदिक रस-रसायन जैसे - अश्वगंधा-पाक, कौंच-पाक, ब्रह्म-रसायन, च्यवनप्राश, अवलेह, गोंद के लड्डू, मोगर लड्डू, मेथी लड्डू, सूखे मेवे व उनके व्यंजन।
हेमन्त ऋतु में अपथ्य आहार -
हेमन्त ऋतु में निम्न भोजन स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं रहता है -
- ठण्डा/शीतल व वातवर्धक भोजन।
- लघु, प्रमिताहार (थोडा, नपा तुला भोजन)।
- बहुत पतला आहार (जैसे पानी में घुला सत्तू)।
हेमन्त ऋतु में पथ्य विहार (करने योग्य कार्य) -
- शरीर संशोधन हेतु वमन या कुन्जल (जल धौति) क्रिया करें।
- गुनगुने पानी से टब में स्नान करें, उससे पहले तेल की मालिश (शिर, कान, नाक, व पैर के तलुओं में), व उबटन करें।
- गर्म व गहरे रंग के कपड़े, जुते-मौजे, दस्ताने, टोपी, मफ़लर, स्कार्फ आदि का उपयोग करें।
- धूप सेवन करना, आग तापना, हाथ-पांव गर्म जल से धोना आदि हितकर होता है।
हेमन्त ऋतु में अपथ्य विहार (क्या नहीं करें) -
- दिन में सोना (दिवाशयन) नहीं चाहिए।
- वायु के झोंकों वाली जगह नहीं रहें।
- पाँव खुले नहीं रखें, सफेद या हल्के रंग के कपड़े नहीं पहनें।
4. शिशिर-ऋतुचर्या (daily routine in the winter season)
शिशिर ऋतु का समय -
जनवरी से फ़रवरी (माघ-फाल्गुन)।
ऋतु-स्वभाव -
कफ संचय, पाचकाग्नि की तीव्रता।
शिशिर ऋतु में सम्भावित बीमारियाँ -
- होठ, त्वचा व बिवाई फटना।
- सर्दी व रुक्षता (Cold and Dryness)।
- वातिक रोग - पक्षाघात, अर्दित।
- वात-श्लैष्मिक रोग - वात-श्लैष्मिक ज्वर (इन्फ्लुएंजा), श्वास फूलना (Breathlessness), कास (खांसी)।
शिशिर ऋतु में देह-प्रकृति -
शिशिर ऋतु वातश्लैष्म प्रकृति वाले लोगों के लिए कष्टप्रद होती है।
शिशिर ऋतु में पथ्य आहार (शिशिर ऋतु के अनुसार भोजन) -
शिशिर ऋतु में निम्न भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद रहते हैं -
- हेमन्त ऋतु वाले सभी आहार।
- लहसुन-अदरख चटनी, मैदे से बने व्यंजन, सुरण-कंद (जिमीकंद) की सब्जी खाएं।
- दूध का सेवन करें।
- आयुर्वेदिक रसायन - लोहासव, अश्वगंधारिष्ट, द्राक्षासव, समान मात्रा में हरीतकी व पिप्पली का सेवन करें।
शिशिर ऋतु में अपथ्य आहार -
हेमन्त ऋतु की तरह शिशिर ऋतु में भी निम्न भोजन स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं रहता है -
- ठण्डा/शीतल व वातवर्धक भोजन व पेय।
- लघु, प्रमिताहार (थोडा, नपा तुला भोजन)।
- बहुत पतला आहार (जैसे पानी में घुला सत्तू)।
शिशिर ऋतु में पथ्य विहार (करने योग्य कार्य) -
- गर्म पानी से स्नान करें, तेल की मालिश (शिर, कान, नाक, व पैर के तलुओं में) करें।
- गर्म व गहरे रंग के कपड़े, जुते-मौजे, दस्ताने, टोपी, मफ़लर, स्कार्फ आदि का उपयोग करें।
- धूप सेवन करना (सूर्य की तरफ पीठ करके), आग तापना, हाथ-पांव गर्म जल से धोना आदि हितकर होता है।
शिशिर ऋतु में अपथ्य विहार (क्या नहीं करें) -
- वर्षा, शीत-लहर से बचें।
- वायु के झोंकों वाली जगह नहीं रहें।
- धूप सेवन सामने से नहीं करें।
- पाँव खुले नहीं रखें, सफेद या हल्के रंग के कपड़े नहीं पहनें।
5. वसन्त-ऋतुचर्या (daily routine in the spring season)
वसन्त ऋतु का समय -
मार्च से अप्रैल (चैत्र-वैशाख)।
ऋतु-स्वभाव -
कफ प्रकोप।
वसन्त ऋतु में सम्भावित बीमारियाँ -
- श्वसन रोग - श्वास (Breath shortness), कास (Cough), वात-श्लैष्मिक ज्वर (इन्फ्लुएंजा)।
- पाचन तन्त्र / पेट के रोग - वमन (Vomiting), अरुचि (Anorexia), भारीपन, अग्निमांद्य (Dyspepsia), आध्मान (आफरा Bloating/Tympanites), आटोप (Tenesmus, Growling or Borborygmi), विबन्ध (Constipation), उदरशूल (पेटदर्द Colic), कृमिरोग।
- अन्य - अंगमर्द (Myalgia), ज्वर/बुखार।
वसन्त ऋतु में देह-प्रकृति -
वसन्त ऋतु कफ प्रकृति वाले लोगों के लिए कष्टप्रद होती है।
वसन्त ऋतु में पथ्य आहार (वसन्त ऋतु के अनुसार भोजन) -
- रुक्ष, कटु, तिक्त व कषाय रस वाले खाद्य।
- अनाज/धान - ज्वार, बाजरा, मक्का, पुराने चावल, गेहूँ, जौ।
- दालें - मूंग, मसूर, अरहर, व चने की दाल।
- सब्जियां - गाजर, बथुआ, मूली, घिया, धनिया, चौलाई, परवल, पालक, सरसों, मेथी, अदरख आदि।
वसन्त ऋतु में अपथ्य आहार -
वसन्त ऋतु में निम्न भोजन स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं रहता है -
- शीतल, स्निग्ध, गुरु, अम्ल एवं मधुर खाद्य।
- नया अनाज व नया गुड़, गन्ना, उड़द।
- दही व भैंस का दूध।
- आलु, प्याज, सिंघाड़ा।
वसन्त ऋतु में पथ्य विहार (करने योग्य कार्य) -
- शरीर संशोधन के लिए वमन, कुन्जल, जलनेति, नस्य आदि करें।
- ब्रम्ह मुहूर्त में उठाना, शौचादि करके योगासन, ध्यान, कसरत, व्यायाम, सुबह की सैर (बाग़-बगीचों या नदी किनारे की हवा में), तेल की मालिश, उबटन, शरीर पर चन्दन, अगर आदि का लेप करें।
- आयुर्वेदिक रसायन - शहद के साथ हरीतकी चूर्ण, चिकित्सक की सलाहानुसार खांसी की औषधियां एवं नेत्रों में अंजन/काजल लगायें।
वसन्त ऋतु में अपथ्य विहार (क्या नहीं करें) -
- दिवाशयन (दिन में ना सोयें)।
- अधिक देर तक एक ही जगह नहीं बैठें।
6. ग्रीष्म-ऋतुचर्या (daily routine in the summer season)
ग्रीष्म ऋतु का समय -
मई से जून (ज्येष्ठ-आषाढ़)।
ऋतु-स्वभाव -
वात का संचय व कफ का प्रशमन।
ग्रीष्म ऋतु में सम्भावित बीमारियाँ -
- रुक्षता (Roughness), दौर्बल्य (Weakness), अन्शुघात (लू-लगना), रक्त पित्त (नकसीर), दाह, तृषा (Thrust)।
- हैजा (Cholera), खसरा (Measles), चेचक (smallpox), रोमांतिका या मसूरिका (Rubella या German measles)।
- वमन (vomiting), अतिसार (diarrhea), ज्वर (fever)।
- पांडू, कामला, या पीलिया (Jaundice), यकृद्दाल्युदर (Liver cirrhosis)।
ग्रीष्म ऋतु में देह-प्रकृति -
ग्रीष्म ऋतु वात प्रकृति वाले लोगों के लिए कष्टप्रद होती है।
ग्रीष्म ऋतु में पथ्य आहार (ग्रीष्म ऋतु के अनुसार भोजन) -
- शीत, स्निग्ध, मधुर, एवं लघु आहार।
- साठी चावल, जौ, मूंग, मसूर खाएं।
- दूध, छाछ, दही की लस्सी, फलों का रस, सत्तू, पेय पदार्थ का सेवन करें।
- खरबूजा, तरबूज, शहतूत, नारियल पानी, जलजीरा, कैरी-पना (पणा / पानक), नारंगी, अनार, निम्बू, व गन्ने का रस पिएं।
- प्याज व कैरी (कच्चा आम) खाएं।
ग्रीष्म ऋतु में अपथ्य आहार -
ग्रीष्म ऋतु में निम्न भोजन स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं रहता है -
- उष्ण, तीक्ष्ण, रुक्ष, लवण रस वाले खाद्य।
- मांस।
- तले हुए खाद्य, मैदा या बेसन से बने खाद्य, व तेज मसालों से बने खाद्य।
- मदिरा।
ग्रीष्म ऋतु में पथ्य विहार (करने योग्य कार्य) -
- ब्रह्म-मुहूर्त में उषःपान करें।
- बाग़ भ्रमण पर जाएँ।
- सुबह-शाम दो बार स्नान करें।
- धूप में सिर ढक कर व पानी पिने के बाद निकले।
- बार-बार थोडा-थोडा पानी पिते रहें।
- हल्के व सूती कपडे पहनें।
- दिन में शयन लाभप्रद होता है।
- संक्रामक बीमारियों से बचाव हेतु टीकाकरण करवाएं।
ग्रीष्म ऋतु में अपथ्य विहार (क्या नहीं करें) -
- धूप, प्रदूषित जल, व प्रदूषित जगह (मेले आदि) से बचें।
- कसरत, व्यायाम, व सहवास अधिक नहीं करें।
- प्यास को रोकें नहीं।
- सिंथेटिक कपड़े नहीं पहनें।
- कृत्रिम सौन्दर्य-प्रसाधन का प्रयोग ज्यादा नहीं करें।
Plz, contact us for more knowledge and benefits.