इस लेख में, इम्युनिटी क्या होती है? तथा शरीर की इम्युनिटी पावर कैसे बढ़ाएं? इस बारे में साधारण शब्दों में जानकारी दी जा रही है ताकि आप अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा पायें व अपने स्वास्थ्य-स्तर को हमेशा सर्वश्रेष्ठ रख सकें।
इम्युनिटी क्या होती है?
बाह्य रोगाणुओं से लड़ने वाले शरीर के प्रतिरक्षा-तन्त्र को इम्यून सिस्टम कहते हैं, तथा शरीर की रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता को इम्युनिटी पावर या प्रतिरक्षा शक्ति या रोग-प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं।
साधारण शब्दों में इम्युनिटी वह फ़ौज होती है जो शरीर को रोगाणुओं के हमले व बिमारियों से सुरक्षा प्रदान करती है।
शरीर द्वारा अपने (Self) व पराये (Foreign or Non-self) की पहचान करना व उसी अनुरूप प्रतिक्रिया देना (अपने को बचाना व पराये को मारना) इम्युनिटी कहलाता है।
वैज्ञानिक भाषा में बहुकोशिकीय जीवों द्वारा हानिकारक सूक्ष्मजीवों का प्रतिरोध करने की क्षमता को प्रतिरक्षा या इम्युनिटी कहते हैं। यह क्षमता विशिष्ट (Specific - किसी विशेष रोगाणु के खिलाफ़) व सामान्य या अविशिष्ट (Nonspecific - सभी रोगाणुओं के खिलाफ़) दोनों होती है।
रोगाणुओं (Pathogens) से बीमारी (Disease) कैसे होती है?
जब कोई रोगाणु (जैसे सूक्ष्म-जीवी बैक्टीरिया, वायरस, फंगस, प्रोटोज़ोआ, या पैरासाइट परजीवी), या कैंसर कोशिका, सनबर्न, कोई रसायन या विषाक्त पदार्थ शरीर पर हमला करता है, तो शरीर अपनी फ़ौज (इम्युनिटी) उसके सामने खड़ी कर देता है, अब इन तीन में से कोई एक स्तिथि होती है -
- यदि हमलावर के अनुपात में शरीर में पर्याप्त फ़ौज है तो वह रोगाणु को मार देती है, तथा शरीर स्वस्थ (Healthy) रहता है।
- यदि हमलावरों की संख्या शारीरिक फ़ौज की क्षमता से बहुत ज्यादा है तो सारे रोगाणु नहीं मर पाते, और वो बीमारी उत्पन्न कर देते हैं।
- यदि हमलावर की संख्या ज्यादा नहीं है मगर फ़ौज कमज़ोर है तो इस स्तिथि में भी रोगाणु नहीं मर पाते हैं व बीमारी उत्पन्न कर देते हैं।
अर्थात यदि इम्युनिटी कमजोर है या कम है तो शरीर में संक्रमण, एलर्जी, व कैंसर जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।
शरीर को बीमार होने से बचाने के लिये या तो रोगाणुओं / कारणों को कम कीजिए या फिर इम्युनिटी बढाइये।
इनमें से कौनसा संभव है ?
शायद इम्युनिटी बढाना, है ना !!
प्रतिरक्षा प्रणाली के विभिन्न अंग:
शरीर का प्रतिरक्षा-तन्त्र (Immune System) कोशिकाओं, ऊतकों व अंगों का एक जटिल नेटवर्क होता है जिसमें रक्त की श्वेत रक्त-कणिकाएं, प्लाज्मा सेल्स, मास्ट सेल्स, त्वचा, श्लेष्मा झिल्लियाँ आदि शामिल होते हैं।
त्वचा:
त्वचा कीटाणुओं को शरीर में जाने से रोकने में मदद करती है। आमतौर पर रोगाणुओं के खिलाफ रक्षा की पहली पंक्ति त्वचा ही होती है। त्वचा की विशिष्ट परतों में प्रतिरक्षा कोशिकाएं पाई जाती हैं जबकि कुछ कोशिकाएं महत्वपूर्ण रोगाणुरोधी प्रोटीन का उत्पादन और स्राव करती हैं।
श्लेष्मा झिल्ली Mucus membrane:
कुछ अंगों व शरीर की गुहाओं की नम आंतरिक परत - श्लेष्मा झिल्ली, बलगम व अन्य पदार्थ बना कर कीटाणुओं को फंसा सकती है व उनसे लड़ सकती है। जैसे श्वसन पथ व आंत की श्लेष्मा झिल्ली।
श्वेत रक्त कोशिकाएं (Leukocytes):
कीटाणुओं से लड़ने में इनकी भूमिका मुख्य होती है।
हमलावर रोगाणुओं को चबाने या भक्षण का कार्य करने वाली कोशिकाएं फेगोसाइट्स कहलाती हैं (जैसे बैक्टीरिया से लड़ने व भक्षण करने के लिए न्युट्रोफिल, वायरस के लिए लिम्फोसाइट्स, परजीवी व एलर्जन के लिए इओसिनोफ़िल)।
लिम्फोसाइट्स आक्रमणकारियों को याद रखने एवं उन्हें नष्ट करने में मदद करती हैं।
लिम्फोसाइट्स दो प्रकार की होती हैं - बी लिम्फोसाइट्स एवं टी लिम्फोसाइट्स।
अस्थि मज्जा (Bone-marrow) में परिपक्व होने वाली बी लिम्फोसाइट्स शरीर की सैन्य खुफिया प्रणाली की तरह अपने लक्ष्य को ढूंढ कर, एंटीबाडी बना कर हमलावर को रोकती है तथा सैनिकों को बुलाती है।
थाइमस ग्रंथि (Thymus gland) में परिपक्व होने वाली टी लिम्फोसाइट्स सैनिकों की तरह होती हैं - वे खुफिया तंत्र द्वारा पहचाने व एंटीबाडी द्वारा रोके गए आक्रमणकारियों को नष्ट कर देती हैं।
लसीका प्रणाली (Lymphatic system):
लसीका प्रणाली के अंग व ऊतक (जैसे थाइमस, प्लीहा, टॉन्सिल, लिम्फ नोड्स, लसीका वाहिकाएं व अस्थि मज्जा) सफेद रक्त कोशिकाओं का उत्पादन, भंडारण एवं परिवहन करते हैं।
अस्थि मज्जा (Bone marrow) में न्यूट्रोफिल, ईओसिनोफिल, बेसोफिल, मास्ट कोशिकाएं, मोनोसाइट्स, डेंड्राइटिक कोशिकाएं व मैक्रोफेज आदि प्रथम रक्षा-पंक्ति की कोशिकाओं का उत्पादन होता है।
थाइमस: टी कोशिकाएं छाती के ऊपरी भाग में स्थित एक छोटे अंग थाइमस में परिपक्व होती हैं।
प्लीहा: प्लीहा पेट के पीछे स्थित एक अंग है। प्रतिरक्षा कोशिकाएं प्लीहा के विशिष्ट क्षेत्रों में समृद्ध होती हैं, और रक्त-जनित रोगजनकों को पहचानने पर, वे सक्रिय हो जाती हैं और तदनुसार प्रतिक्रिया करती हैं।
रक्तप्रवाह:
प्रतिरक्षा कोशिकाएं लगातार रक्तप्रवाह में घूमती रहती हैं, तथा रोगाणुओं को ढूंढने के लिए गश्त करती रहती हैं।
इम्युनिटी के प्रकार
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TYPES OF IMMUNITY |
शरीर में दो प्रकार की इम्युनिटी होती है। दोनों तरह की इम्युनिटी मिलकर बीमारी के कारण को पहचान कर उसे समाप्त कर देती है।
A. जन्मजात या अविशिष्ट इम्युनिटी (Innate or Native or Nonspecific Immunity) -
अधिकतर बहुकोशिकीय प्राणियों में जन्म से ही वातावरण के हानिकारक तत्वों के खिलाफ़ प्राकृतिक प्रतिरक्षा पाई जाती है। इसे अर्द्ध-विशिष्ट (Semi-specific) इम्युनिटी भी कहा जाता है।
किसी भी संक्रमण के खिलाफ़ यह पहली रक्षा-पंक्ति है, इसमें प्रतिक्रिया तुरंत (मिनटों) में होती है, यह किसी रोगाणु विशेष के अनुसार नहीं होती (Nonspecific) बल्कि सभी रोगाणुओं के खिलाफ़ कार्य करती है।
इसकी स्मृति नहीं रहती है अर्थात यह लम्बे समय तक प्रतिरक्षा नहीं करती है।
यह बाहरी या पराये तत्व (Foreign or Non-self) की आनुवंशिक गुणों के आधार पर पहचान करती है तथा उसे दाह-क्रिया (Inflammation) या भक्षण-क्रिया (Phagocytosis) के द्वारा नष्ट करती है।
खांसी होना, आंसुओं व त्वचा के तेल में मौजूद एंजाइम, पेट का तेजाब, त्वचा, श्लेष्मा-झिल्लियाँ व श्लेष्मा (Mucus), कुछ कोशिकाएं व रसायन जन्मजात इम्युनिटी के भाग होते हैं।
Humoral Immunity - शरीर की पूरक प्रणाली (कॉम्प्लीमेंट प्रोटीन समूह) जिसमें रासायनिक पदार्थ इंटरफेरॉन व इंटरल्यूकिन-1 होते हैं (जो बुखार का कारण बनते हैं), ये भी रोगाणुओं को नष्ट करते हैं। यह जन्मजात (Innate) इम्युनिटी का ही एक प्रकार है।
Cellular या Cell-Mediated Immunity एंटीबाडी के बजाय भक्षण कोशिकाओं जैसे Phagocytes, T-cells, व साइटोटोक्सिक एंजाइम जैसे Cytokines द्वारा रोगाणु को मारा जाता है।
B. विशिष्ट या अनुकूलक या उपार्जित इम्युनिटी (Specific or Adaptive or Acquired Immunity) -
किसी बाहरी तत्व के सम्पर्क में आने पर शरीर में प्रतिरक्षा उत्पन्न होना जैसे संक्रमण या वैक्सीन लगाने के बाद पैदा होने वाली इम्युनिटी। (उपार्जित Acquired - बाद में बनाई गई या प्राप्त की गई; अनुकूलक Adaptive - किसी के अनुरूप)
यह कशेरुकी (Vertebrates) प्राणियों में ही पाई जाती है।
यह अधिक विकसित प्रकार की इम्युनिटी है जिसमे शरीर की लसीका कोशिकाएं (Lymphatic Cells) विशेष बाहरी तत्व (Specific non-self) की पहचान करती है यानि यह रोगाणु विशेष के अनुरूप होती है (Specific)।
किसी बाहरी रोगाणु के पहली बार सम्पर्क होने पर यह उस रोगाणु को समाप्त या बेअसर कर देती है, दुबारा उसी रोगाणु से सम्पर्क होने पर यह तीव्र प्रतिक्रिया देती है क्योंकि इसमें पुराने संक्रमण की स्मृति बनी रहती है।
इसी प्रकार एक बार बीमारी होने व उसके ठीक होने के बाद शरीर में उसके खिलाफ़ बने एंटीबाडी काफी समय तक मौजूद रहते हैं जो कि निकट भविष्य में होने वाले संक्रमण के खिलाफ़ सुरक्षा देते हैं।
उपार्जित इम्युनिटी से बनी एंटीबाडी कितने समय तक प्रभावशाली रहेंगी, यह बीमारी या रोगाणु के प्रकार पर निर्भर करता है। सुरक्षा का यह समय कुछ दिनों-महीनों से लेकर कुछ वर्षों तक या जीवन-पर्यंत (जैसे चेचक Smallpox) भी हो सकता है। अतः कुछ वैक्सीन जीवन में एक बार ही लगायी जाती है, जबकि कुछ वैक्सीन सालाना या मासिक भी लगायी जाती है।
उपार्जित इम्युनिटी दो प्रकार की होती है - प्राकृतिक उपार्जित इम्युनिटी (Natural Acquired Immunity) व कृत्रिम उपार्जित इम्युनिटी (Artificial Acquired Immunity)।
(a). प्राकृतिक उपार्जित इम्युनिटी (Natural Acquired Immunity) - जब शरीर बाहरी तत्व के सीधे सम्पर्क में आने पर इम्युनिटी विकसित करता है।
यह भी दो प्रकार की होती है - सक्रिय (Active) व सुप्त या निष्क्रिय (Passive)।
(i). सक्रिय प्राकृतिक उपार्जित इम्युनिटी (Active Natural Acquired Immunity) - रोगाणु के सम्पर्क से एंटीबाडी बनना, उदहारण - कोई संक्रमण जैसे कोरोना।
(ii). सुप्त या निष्क्रिय प्राकृतिक उपार्जित इम्युनिटी (Passive Natural Acquired Immunity) - इसमें एंटीबाडी बने हुए ही प्राप्त होते हैं, बनाये नहीं जाते, जैसे शिशु को माता के गर्भ से मिलना (Maternal antibody)।
(b). कृत्रिम उपार्जित इम्युनिटी (Artificial Acquired Immunity) - जब सम्भावित प्राकृतिक संक्रमण से पहले कृत्रिम रूप से रोगाणु या एंटीबाडी को शरीर में प्रवेश करवाकर इम्युनिटी तैयार की जाती है।
यह भी दो प्रकार की होती है - सक्रिय (Active) व सुप्त या निष्क्रिय (Passive)।
(i). सक्रिय कृत्रिम उपार्जित इम्युनिटी (Active Artificial Acquired Immunity) - जैसे टीकाकरण (Vaccination)।
(ii). सुप्त या निष्क्रिय कृत्रिम उपार्जित इम्युनिटी (Passive Artificial Acquired Immunity) - इसमें पहले से बने हुए एंटीबाडी या सक्रिय टी-कोशिकाओं (Activated T-cells) को कृत्रिम रूप से शरीर में डाला जाता है।
प्रतिरक्षा प्रणाली कैसे काम करती है?
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INNATE IMMUNITY |
(A). जन्मजात (Innate) इम्युनिटी की कार्यविधि -
जब कोई रोगाणु शरीर पर हमला करता है तो सर्वप्रथम जन्मजात (Innate) इम्युनिटी अपना कार्य करती है।
यह इम्युनिटी रोगाणु को शरीर में प्रवेश करने से इस प्रकार रोकती है -
- त्वचा बाहरी दीवार का काम करती है तथा अपने एंजाइम द्वारा रोगाणु को मारने में सहायता करती है।
- आंखों के रास्ते रोगाणु के प्रवेश को आंसू रोकते हैं।
- नाक के रास्ते प्रवेश करने वाले रोगाणुओं को छींक, खांसी आदि से वापिस बाहर निकाला जाता है व अंदर आ चुके रोगाणुओं को श्वशन पथ की श्लेष्मा झिल्ली के बलगम (Mucus) द्वारा रोका जाता है।
- मुख से प्रवेश करने वाले रोगाणुओं को पेट (Stomach) के जठर-रस या तेजाब (Acid) द्वारा नष्ट किया जाता है, शेष बचे रोगाणुओं को पाचन तन्त्र की श्लेष्मा-झिल्लियों का बलगम (Mucus from Intestinal mucus membranes) रोकता है तथा एंजाइम उन्हें नष्ट करते हैं।
- रक्त से प्रवेश करने वाले रोगाणुओं को इंटरफेरॉन, इंटरल्यूकिन-1 जैसे रसायन व कुछ रक्त कोशिकाएं बुखार, दाह-क्रिया (Inflammation) व भक्षण-क्रिया (Phagocytosis) के द्वारा नष्ट करते हैं।
सूजन या दाह-क्रिया (Inflammation) व भक्षण-क्रिया (Phagocytosis):
बैक्टीरिया, चोट, विषाक्त पदार्थ, गर्मी, या किसी अन्य कारण से शरीर के ऊतकों के घायल होने पर सूजन व दाह-क्रिया होती है।
क्षतिग्रस्त कोशिकाएं हिस्टामाइन, ब्रैडीकाइनिन, प्रोस्टाग्लैंडीन आदि रसायन छोड़ती हैं। ये रसायन रक्त वाहिकाओं से ऊतकों में तरल पदार्थ का रिसाव कराते हैं, जिससे सूजन हो जाती है।
सूजन हानिकारक पदार्थों के शरीर के स्वस्थ ऊतकों के संपर्क में आने से रोकने में मदद करती है।
सूजन के अलावा ये रसायन फेगोसाइट्स नामक श्वेत रक्त कोशिकाओं को भी आकर्षित करते हैं जो कीटाणुओं, मृत या क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को "खाते हैं"। इस प्रक्रिया को फेगोसाइटोसिस (भक्षण-क्रिया) कहा जाता है। फेगोसाइट्स अंततः मर जाते हैं। मृत ऊतक, मृत बैक्टीरिया, जीवित व मृत फेगोसाइट्स के संग्रह से मवाद (Pus) बनता है।
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ACQUIRED IMMUNITY |
(B). उपार्जित इम्युनिटी की कार्यविधि -
अगर कोई हमलावर जन्मजात (Innate) इम्युनिटी से आगे बढ़ जाता है तो हमारा प्रतिरक्षा-तन्त्र (B-Cells) उस हमलावर के प्रोटीन (एंटीजन) की पहचान करता है (Antigen-Identification) तथा उस पर हमला करता है, इसे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (Immune Response) कहा जाता है।
उपार्जित इम्युनिटी के अंतर्गत एंटीजन की पहचान यह प्रतिरक्षा-प्रतिक्रिया कई तरह से हो सकती है।
(1). एंटीबाडी निर्माण (Antibody Formation) - इस प्रतिक्रिया के पहले प्रकार के तहत हमलावर की सरंचना के अनुसार बी लिम्फोसाइट्स एक विशेष प्रकार की शारीरिक प्रोटीन (एंटीबाडी - Antibody / Immunoglobins) बनाते हैं।
ये एंटीबॉडी बाहरी एंटीजन पर हमला करने, उन्हें कमजोर करने व नष्ट करने का काम करते हैं।
एंटीबाडी हमलावर एंटीजन से चिपक कर एंटीजन-एंटीबाडी युग्म बनाते हैं -
- जिससे एंटीजन निष्क्रिय हो जाते हैं।
- इस युग्म को विशेष प्रकार की टी लिम्फोसाइट्स - नेचुरल किलर सेल्स (NK Cells) नष्ट कर देती है।
- या फेगोसाईट कोशिकाओं को बुलाया जाता है, फेगोसाईट कोशिकाएं एंटीजन-एंटीबाडी युग्म को निगल लेती हैं तथा अपने एंजाइम द्वारा एंटीजन को मार देती है तथा स्वयं भी फट जाती है (Cell Lysis)।
एंटीबाडी के अन्य कार्य -
- रोगाणुओं द्वारा छोड़े गए विषाक्त व अन्य हानिकारक पदार्थों को बेअसर करना।
- कॉम्प्लीमेंट नामक प्रोटीन समूह को सक्रिय करना जो बैक्टीरिया, वायरस या संक्रमित कोशिकाओं को मारने में मदद करता है।
एंटीजन व एंटीबाडी का ताला-चाबी सिद्धांत - जिस प्रकार हर ताला अपनी खुद की चाबी से ही खुलता है उसी प्रकार एंटीजन की प्रोटीन की सरंचना के अनुसार ही शरीर में एंटीबाडी मौजूद होते हैं या नए बनते हैं, अर्थात हर प्रकार के संक्रमण के खिलाफ़ शरीर में अलग-अलग एंटीबाडी उत्पन्न होते हैं, अतः हर बीमारी के लिए अलग वैक्सीन बनाई जाती है, जो केवल उसी बीमारी से रक्षा कर पाती है।
कभी-कभी रोगाणु अपनी सरंचना बदल लेता है, तो नई सरंचना के खिलाफ़ उसी बीमारी के लिए फिर से नई वैक्सीन बनानी पड़ती है।
(2). शरीर के तापमान में वृद्धि होना (Rise in body temperature) - फेगोसाईट कोशिकाओं के फटने से रक्त में एक रासायनिक पदार्थ मिल जाता है, जिसकी अधिकता से बुखार आता है, बुखार यानि शरीर के उच्च तापमान से अन्य रोगाणु निष्क्रिय या नष्ट हो जाते हैं।
इस प्रकार बुखार होना कोई बीमारी नहीं है, बल्कि रोगाणुओं से लड़ने के लिए शरीर के प्रतिरक्षा-तन्त्र की योजना का एक भाग होता है।
बुखार हुआ है इसका मतलब कोई संक्रमण हुआ है।
(3). संक्रमण की स्मृति - हमारे प्रतिरक्षा-तन्त्र की मेमोरी सेल्स एंटीजन को याद रखती हैं, तथा एंटीबाडी का संचय करके रखती है। भविष्य में जब कभी उसी एंटीजन को देखती है, तो उसे पहचान कर जल्दी से सही एंटीबॉडी भेज देती है।
एक निश्चित बीमारी के खिलाफ इस सुरक्षा या एंटीबाडी का पर्याप्त मात्रा में होना भी प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) कहा जा सकता है।
इम्युनिटी क्यों जरुरी होती है?
एक अच्छी प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्युनिटी) बीमारियों से लड़ने व विभिन्न संक्रमण को रोकने के लिए अति आवश्यक होती है। यदि शरीर अपनी रक्षा करने में सक्षम नहीं है, तो कोई भी बीमारी हो सकती है।
कमजोर इम्युनिटी के दुष्प्रभाव एवं प्रतिरक्षा प्रणाली के विकार -
- सर्दी, खाँसी व जुकाम।
- बार-बार संक्रमण (infection) होना।
- कमजोरी व थकान।
- एलर्जिक व ऑटोइम्यून समस्याएं - कभी-कभी किसी व्यक्ति में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न हो जाती है, भले ही कोई वास्तविक खतरा न हो। इससे एलर्जी, अस्थमा एवं ऑटोइम्यून बीमारियों जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ऑटोइम्यून बीमारी में इम्यून सिस्टम गलती से शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला कर देता है।
- इम्यूनोडिफ़िशिएंसी - प्रतिरक्षा प्रणाली की एक अन्य समस्या है - इम्यूनोडिफ़िशिएंसी, जिसमें प्रतिरक्षा-तन्त्र ठीक से काम नहीं करता है। यह विकार प्रायः आनुवंशिक होता है, जिसकी वजह से बार-बार बीमार पड़ना, संक्रमण लंबे समय तक चलना, इलाज का अधिक गंभीर व कठिन होना आदि हो सकता है। उदाहरण के लिए, एचआईवी वायरस या एड्स (एक्वायर्ड इम्युनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम)।
इम्युनिटी को कम या कमजोर करने वाले कारण -
प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्युनिटी) को कम करने वाले तीन मुख्य कारण हैं - तनाव, खराब आहार/पोषण एवं खराब जीवनशैली (नींद की कमी)।
दीर्घकालीन तनाव (Stress) -
थोड़ा तनाव अच्छा हो सकता है, क्योंकि यह शरीर को चुनौतियों के लिए तैयार करता है। लेकिन अधिक व दीर्घकालीन तनाव हानिकारक होता है।
भावनात्मक व मानसिक कारक जैसे तनाव, चिंता, उदासी आदि के समय हार्मोन कोर्टिसोल निकलता है जो इम्युनिटी को नुकसान पहुंचाता है।
कोर्टिसोल की वजह से लिम्फोसाइट्स व नेचुरल किलर सेल्स (NK Cells) की संख्या में कमी हो सकती है तथा मस्तिष्क की कार्य-प्रणाली में भी कई बदलाव हो सकते हैं जिससे इम्यून रेस्पोंस में देरी हो सकती है।
खराब आहार/पोषण (Poor Diet / Poor Nutrition) -
जंक फूड, प्रोसेस्ड फ़ूड, फास्ट फूड, टेकअवे फूड आदि में वसा, नमक व चीनी का उच्च स्तर होता है। ये सभी चीजें इम्यून सिस्टम को कमजोर करती हैं।
खराब जीवनशैली -
शारीरिक सक्रियता व नींद की कमी (अनिद्रा) की वजह से इम्यून सिस्टम के विभिन्न भागों / अंगों की मरम्मत का कार्य बाधित होता है।
पर्यावरणीय कारक -
- प्रदूषण
- कीटनाशक व पैस्टीसाइड
- मोबाइल रेडियेशन व सूर्य विकिरण
इम्युनिटी को कम करने वाले अन्य कारण -
कुछ अन्य कारण भी इम्युनिटी को कम करते हैं, जैसे
- आनुवंशिकता (जीन)
- सिंथेटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग
- शराब एवं धूम्रपान
- शरीर में टॉक्सीन का जमाव
शरीर की इम्युनिटी पावर कैसे बढ़ाएं? How To Boost Our Immune System / How To Get Healthy?
हम सभी जानते हैं कि स्वस्थ रहने के लिए हमें स्वस्थ भोजन, सक्रिय रहने व नियमित व्यायाम करने की जरूरत होती है। यानि कि स्वस्थ रहने के लिए सही खाद्य पदार्थों का सेवन करने के अलावा और भी बहुत कुछ जरुरी होता है।
कृत्रिम रूप से इम्युनिटी बढ़ाना:
टीकाकरण व पूर्व निर्मित एंटीबाडी द्वारा कृत्रिम रूप से इम्युनिटी को बढाया जा सकता है।
(a). टीकाकरण (Vaccination - Active Immunization):
किसी संक्रामक (बैक्टीरिया, वायरस जनित) बीमारी विशेष के खिलाफ़ कृत्रिम रूप से अल्पकालिक या दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए वैक्सीन लगायी जाती है (टीकाकरण या वैक्सीनेशन)।
वैक्सीन में बीमारी पैदा करने वाले रोगाणु को ही डाला जाता है, मगर यह इस प्रकार से बनायीं जाती है कि इसमें रोगाणु की रोग-कारक क्षमता को ख़त्म कर दिया जाता है, लेकिन सरंचना बनी रहती है, ताकि उसकी सरंचना के हिसाब से एंटीबाडी बन जाये एवं भविष्य में जब कभी उक्त रोगाणु का प्राकृतिक संक्रमण होता है तो शरीर में पहले से ही मौजूद एंटीबाडी उसे नष्ट कर देती हैं।
एक वैक्सीन से सभी बिमारियों के खिलाफ़ इम्युनिटी नहीं बनती है।
जिन बिमारियों के नियंत्रण व रोकथाम हेतु वैक्सीन उपलब्ध हैं उन्हें उनके तय समयानुसार जरुर लगवाएं ताकि इन बिमारियों के खिलाफ़ इम्युनिटी विकसित की जा सके।
टीकाकरण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी से हमेशा अप-डेट रहें।
(b). कृत्रिम एंटीबाडी (Passive Immunization):
पूर्व निर्मित एंटीबाडी के उपयोग से रोगाणु को मारा जाता है, जैसे एंटी टिटनेस सीरम (ATS), एंटी रेबीज सीरम, एंटी स्नेक वेनम (ASV) आदि।
त्वरित सुरक्षा के लिए इस तरह की एंटीबाडी का उपयोग किया जाता है।
ऐसी एंटीबाडी व इम्युनिटी की उम्र कम होती है।
प्राकृतिक रूप से इम्युनिटी बढ़ाना:
प्राकृतिक रूप से सभी तरह के रोगों के खिलाफ़ इम्युनिटी बढ़ाने के लिए इन चार उपायों का उचित सामंजस्य बैठाना जरुरी होता है - DELA (यानि Diet, Exercise, Lifestyle एवं Ayurveda), अर्थात ये चारों साथ में हो तो इम्युनिटी को मजबूत किया जा सकता है।
(A). Diet (संतुलित आहार व स्वस्थ पोषण - इम्युनिटी पावर कैसे बढ़ाएं क्या खाएं):
प्रतिरक्षा प्रणाली का लगभग 70-75% भाग पाचन तन्त्र से सम्बन्धित होता है। अतः इम्यून सिस्टम को मजबूत व स्वस्थ रखने के लिए पाचन तन्त्र को स्वस्थ रखना जरुरी होता है।
एक स्वस्थ व संतुलित आहार पाचन तन्त्र व प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कर सकता है तथा भविष्य में बीमार होने से बचा सकता है।
एक अंग्रेजी कहावत है - "Eat The Rainbow", यानि आहार में रंग-रंगीली सब्जियां, फल, नट, साबुत अनाज, फलियां, मछली आदि को शामिल करें। ये फाइबर, पोषक तत्वों व एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं।
- एंटी-ऑक्सीडेंट - ये कोशिकाओं को फ्री-रेडिकल्स से बचातें हैं तथा हृदय रोग, अल्जाइमर, कैंसर आदि रोगों से रक्षा करते हैं।
- फाइबर - ये आंतों के मित्र बैक्टीरिया के लिए लाभदायक होते हैं।
- पोषक तत्व जैसे विटामिन - सी इम्युनिटी को बढ़ाते हैं।
वैज्ञानिक रूप से स्वस्थ व संतुलित आहार में पर्याप्त पानी, प्रोटीन, स्वस्थ वसा, प्रोबायोटिक्स, ऊर्जा के लिए आवश्यक कार्बोहाइड्रेट, सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे विटामिन एवं खनिज आदि संतुलित मात्रा में शामिल होने चाहिये।
(1). पर्याप्त पानी पीना:
वैज्ञानिकों के अनुसार मानव शरीर 60% पानी से बना होता है। पसीने, सांसों, पेशाब, मल के साथ व अन्य शारीरिक क्रियाओं में शरीर से पानी बाहर निकलता है, अतः शरीर का जल-स्तर बनाये रखने के लिए हर दिन छह से आठ गिलास पानी पीना फायदेमंद रहता है।
पानी पीने से प्रतिरक्षा प्रणाली को सुचारू रखने में मदद कैसे मिलती है?
पानी रोगाणुओं से बचाव करने में कोई मदद नहीं करता बल्कि निम्न प्रकार से इम्युनिटी बढ़ाने में अप्रत्यक्ष मदद करता है -
- प्रतिरक्षा कोशिकाओं के परिवहन में मदद करके (संक्रमण से लड़ने वाली प्रतिरक्षा कोशिकाओं का शरीर में परिवहन लिम्फ नमक द्रव व रक्त से होता है, जिनका अधिकांश भाग पानी से बना होता है)।
- शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल कर।
- निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) को रोक कर (निर्जलीकरण से सिरदर्द, शारीरिक क्षमता, ध्यान, मनोदशा, पाचन, हृदय और गुर्दे के कार्य आदि में बाधा उत्पन्न हो सकती है। निर्जलीकरण को रोकने के लिए चाय, जूस एवं अन्य तरल पदार्थ भी पीये जा सकते हैं, मगर पानी अधिक बेहतर होता है क्योंकि यह कैलोरी, एडिटिव्स व चीनी से मुक्त होता है)।
पानी कितना व कब पीयें?
- प्यास लगने पर पानी पीना चाहिए जब तक कि प्यास बुझ ना जाये।
- सामान्यतः प्रतिदिन 7-8 गिलास पानी पीना उचित रहता है, लेकिन गर्म वातावरण, कार्य व व्यायाम की अधिकता के समय पानी थोडा ज्यादा पीएं।
- पानी की दैनिक मात्रा इतनी होनी चाहिए जिससे मूत्र का रंग हल्का पीला हो, गहरा पीला नहीं।
- जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है प्यास लगनी कम हो जाती है, अतः वृद्ध वयस्कों को प्यास न लगने पर भी नियमित रूप से पानी पीना चाहिए।
(2). प्रोटीन:
व्यायाम के तनाव को बेहतर ढंग से संभालने, मांसपेशियों की मरम्मत करने एवं उन्हें मजबूत बनाने के लिए आहार में प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा जरुरी होती है।
(3). स्वस्थ वसा:
स्वस्थ वसा जैसे जैतून का तेल, ओमेगा -3 फैटी-एसिड्स आदि अत्यधिक सूजन-रोधी होने के कारण पुरानी सूजन से प्रतिरक्षा प्रणाली को होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं। तथा हृद्य-रोग, टाइप-2 डायबिटीज, बैक्टीरिया व वायरस जनित रोगों से रक्षा कर सकते हैं।
(4). प्रोबायोटिक्स:
प्रोबायोटिक्स पेट के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अद्भुत होते हैं, विशेषकर दस्त के समय।
किण्वित खाद्य पदार्थ या प्रोबायोटिक्स हानिकारक रोगजनकों की पहचान करके प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करते हैं।
किण्वित खाद्य पदार्थ जैसे दही, सौकरकूट, किमची, केफिर, नाटो आदि पाचन तंत्र में पाये जाने वाले प्रोबायोटिक्स नामक लाभकारी बैक्टीरिया से भरपूर होते हैं।
यदि नियमित रूप से किण्वित खाद्य पदार्थ खाना संभव नहीं हो तो प्रोबायोटिक पूरक खुराक (गोली / कैप्सूल) एक अन्य विकल्प हो सकता है।
(5). कार्बोहाइड्रेट:
ऊर्जा के लिए आवश्यक कार्बोहाइड्रेट भी संतुलित मात्रा में लें।
(6). सूक्ष्म पोषक तत्व (Micronutrients):
सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे विटामिन (सी, डी, ई, बी) व खनिज (जिंक) आदि इम्युनिटी बढ़ाने में मदद करते हैं। कुछ विटामिन कैंसर के रोगियों के लिए फायदेमंद होते हैं, जैसे बी17 (विटामिन बी-17 या एमिग्डालिन) एवं बीटा कैरोटीन।
विशेषज्ञों के अनुसार शरीर में पूरक आहार के बजाय प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त विटामिन व खनिज का अवशोषण अधिक होता है, अतः सभी आवश्यक विटामिन एवं खनिज प्राप्त करने के लिए ताजे फल व सब्जियां खूब खाएं।
विटामिन बी6 - चिकन, सालमन, टूना, केला, हरी सब्जियां व आलू (छिलके सहित)।
विटामिन सी - टमाटर, ब्रोकोली, पालक, आंवला, खट्टे फल जैसे संतरा, निम्बू, स्ट्रॉबेरी आदि।
विटामिन ई - बादाम, सूरजमुखी का तेल व बीज, कुसुम का तेल, पीनट बटर, पालक आदि।
अच्छी गुणवत्ता के पूरक आहार (supplements) से भी विटामिन व खनिज तत्वों की पूर्ति की जा सकती है।
(7). ये भी ध्यान रखें:
- डेयरी उत्पाद, पशु वसा एवं लाल मांस का सेवन कम करें।
- चीनी की अधिकता, परिष्कृत (रिफाइंड) कार्ब्स व प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से बचें। ये सभी इम्युनिटी को कम कर सकते हैं। चीनी वायरस को बढ़ावा देती है, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ शरीर को कमजोर और बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं। अतिरिक्त शर्करा (चीनी) व परिष्कृत (रिफाइंड) कार्ब्स मोटापे, टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग का कारण बनते हैं। चीनी का सेवन कम करने से सूजन एवं इन रोगों का खतरा कम हो सकता है।
(B). Exercise (कसरत - शारीरिक हलचल / गतिविधियाँ):
नियमित व्यायाम प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने का एक आसान तरीका है।
यह तनाव कम करने के साथ-साथ ऑस्टियोपोरोसिस, हृदय रोग व कुछ प्रकार के कैंसर होने की संभावना कम कर सकता है।
नियमित मध्यम व्यायाम से सूजन कम हो सकती है, साथ ही प्रतिरक्षा कोशिकाओं के नियमित रूप से पुन: उत्पन्न करने में मदद मिल सकती है।
रक्त-संचरण बढ़ने से प्रतिरक्षा कोशिकाओं के परिवहन में तेजी आती है।
मोटापा कई बिमारियों का कारण होता है, नियमित व्यायाम से वजन नियंत्रित रहता है।
दिन में लगभग आधा घंटा व सप्ताह में कम से कम 150 मिनट का मध्यम व्यायाम करना चाहिए।
लंबे समय तक ज्यादा व्यायाम इम्युनिटी कम कर सकता है, अतः औसत या मध्यम व्यायाम करें।
मध्यम व्यायाम में किसी भी प्रकार शारीरिक हलचल या गतिविधी शामिल हो सकती है: चलना (वॉकिंग), टहलना (जॉगिंग), तेज चलना (ब्रिस्क वॉकिंग), हाइकिंग (हल्की लंबी पैदल यात्रा), साइकिल चलाना, बाइकिंग (बाइक की सवारी), नृत्य (डांसिंग), योग, तैरना (स्विमिंग), गोल्फ या अन्य गेम खेलना आदि।
(C). Lifestyle (अच्छी व स्वस्थ जीवनशैली):
तनावमुक्त रहने के लिए एक अच्छी व स्वस्थ जीवनशैली अपनाना बहुत महत्वपूर्ण होता है।
भावनात्मक मजबूती, मानसिक व आंतरिक शांति को बढ़ाने व तनाव कम करने के लिए अच्छी नींद, कसरत, योग, ध्यान आदि का सहारा लें।
तनाव कम करने के 10 टिप्स -
Tip #1. अच्छी नींद - इम्युनिटी बढ़ाने के लिए एकमात्र एवं सबसे अच्छा टिप है - पर्याप्त नींद।
प्रतिरक्षा प्रणाली को दिन-भर के तनाव से उबरने व ठीक से काम करने के लिए हर रात आराम की आवश्यकता होती है, जो कि एक अच्छी गुणवत्तापूर्ण नींद से मिलता है।
प्रतिरक्षा तन्त्र इस समय अपनी मरम्मत के साथ-साथ कोशिका विभाजन व नई कोशिकाओं को उत्पन्न करने का कार्य करता है, यानि नई फ़ौज तैयार करता है। नींद के समय संक्रमण से लड़ने वाले हॉर्मोन का नियमन (Regulation) भी होता है।
अतः प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत और स्वस्थ रखने के लिए लगभग 7-8 घंटे की नींद लें।
सोने का समय निर्धारित करें, दिन के दौरान सक्रिय रहें व सोयें नहीं, सोने से पहले स्वयं को आराम दें, कॉफ़ी व शराब का सेवन ना करें, शयनकक्ष को ठंडा व प्रकाशहीन रखें।
अगर आपको नींद नहीं आ रही है, तो टीवी या मोबाइल देखने के बजाय किताब पढ़ने या संगीत सुनने की कोशिश करें।
यदि अभी भी नहीं सो पा रहे हैं, तो टहलने जाएं या कुछ हल्के स्ट्रेचिंग व्यायाम करें।
Tip #2. काम के बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें, विश्राम तकनीकों (Relaxation Techniques) का उपयोग करें, साल में एक या दो बार बाहर घूमने जाएँ।
Tip #3. स्वयं को व्यस्त रखें, लेखन, पेंटिंग आदि अपनी अभिरुचि (Hobby) का कार्य करें, बच्चों के साथ खेलें, दूसरों से प्यार करें, ईश्वर की प्रार्थना करें, दोस्त बनायें, सामाजिक रिश्तों व कार्यों का दायरा बढ़ाएं, अपनी पसंद का समाज-सेवा का कार्य करें।
Tip #4. पालतू जानवर पालें - कुत्ते व अन्य पालतू जानवर न सिर्फ अच्छे दोस्त होते हैं बल्कि व्यायाम व कई अन्य तरीकों से हमारे स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं। वयस्कों में रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, व दिल स्वस्थ रखने, बच्चों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बढ़ाने, एलर्जी की संभावना कम करने में मदद मिल सकती है।
Tip #5. हमेशा पॉजिटिव सोचें, चाहे मुश्किल समय ही क्यों ना हो।
Tip #6. खुलकर हंसें।
Tip #7. स्वच्छता रखें, नियमित रूप से साबुन या सेनेटाइज़र से हाथ धोतें रहें, मुंह व दांतों को स्वच्छ रखें (Oral Hygiene)।
Tip #8. धूम्रपान व शराब का सेवन कम या पूरी तरह बंद कर देना चाहिए।
Tip #9. पर्याप्त ताजी हवा व धूप (सनबाथिंग) से भी इम्युनिटी को बढ़ाया व तनाव को घटाया जा सकता है।
Tip #10. योग्य चिकित्सक (साइकोलोजिस्ट) से उचित परामर्श लेकर तनाव को दूर किया जा सकता है।
(D). Ayurveda (Herbs and Supplements):
आयुर्वेद में ऐसे कई खाद्य पदार्थ वर्णित हैं जो आहार में शामिल किये जाने पर प्राकृतिक रूप से इम्युनिटी बढ़ा सकते हैं।
इम्युनिटी बढ़ाने के लिए कुछ आयुर्वेदिक एवं पूरक उत्पाद भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे कवचप्राश जो हर मौसम में इम्युनिटी बढ़ाने में सक्षम है, योग्य एवं अनुभवी चिकित्सक या वैद्य की देखरेख में इनका उपयोग करें।
सर्दी, खांसी, जुकाम आदि होने पर स्वयं से या मेडिकल स्टोर से एंटी-कोल्ड दवाओं का अधिक सेवन ना करें तथा बिना जरूरत एंटीबायोटिक्स न लें क्योंकि इनसे पाचन तन्त्र के मित्र बैक्टीरिया मर जाते हैं एवं वास्तविक जरुरत के समय असर में कमी आ सकती है (ड्रग रेजिस्टेंस)।
यदि आप प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले आयुर्वेदिक एवं पूरक उत्पाद के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो यहां क्लिक करें।
खाद्य पदार्थों के उपयोग से प्राकृतिक रूप से इम्युनिटी कैसे बढ़ाएं?
इम्युनिटी पावर कैसे बढ़ाएं घरेलू उपाय?
कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली को सशक्त बनाना है, तो आहार में इन 20 प्राकृतिक खाद्य पदार्थों को शामिल करने से फायदा होगा।
1. दही
दही विटामिन डी व प्रोबायोटिक्स का एक उत्कृष्ट स्रोत है, जो स्वस्थ पाचन व प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने के लिए आवश्यक है।
दही के बैक्टीरिया दस्त, संग्रहणी / चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम (IBS), खमीर संक्रमण (Yeast Infection) आदि को रोकने में मदद कर सकते हैं। दही खाने से हृदय रोग, स्ट्रोक, स्तन कैंसर, मधुमेह और यहां तक कि अवसाद का खतरा भी कम हो सकता है।
सादे दही में कुछ ताजे फल व शहद मिलाकर स्वादिष्ट स्मूदी का आनंद ले सकते हैं!
या
1/2 कप सादा दही में एक चम्मच शहद, 1/2 चम्मच कद्दूकस किया अदरक, 1/2 चम्मच नींबू का रस व 1 या 2 पिसी काली मिर्च डाल कर अच्छी तरह मिलाकर सेवन करें।
2. हल्दी
रसोई में पाई जाने वाली हल्दी न केवल मसाले के रूप में प्रयोग की जाती है बल्कि यह एक वैकल्पिक दवा (alternative medicines) भी है। इसमें पाये जाने वाले यौगिक करक्यूमिन में एंटीऑक्सिडेंट व एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (immune response) में सुधार लाते हैं।
यह वर्षों से पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस व रुमेटॉइड गठिया के इलाज, मांसपेशियों को व्यायाम से हुई क्षति को सही करने के साथ-साथ एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीवायरल व एंटीबैक्टीरियल के रूप में उपयोग की जाती रही है।
3. लहसुन
लहसुन में उच्च स्तर के एंटीऑक्सिडेंट पाये जाते हैं जो कैंसर को रोकने में मदद करने, रक्तचाप (BP) कम करने, धमनियों को सख्त होने से रोकने व प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए जाने जाते हैं।
लहसुन का एलिसिन नामक सल्फर युक्त यौगिक सर्दी, गले में खराश, खांसी एवं अन्य बीमारियों से बचाव के लिए एक सामान्य घरेलू उपाय है।
लहसुन का उपयोग कैसे करें?
लहसुन की चाय - लहसुन की एक या दो कटी हुई कलियां पानी में डालकर उबालें। 5 मिनट तक छोड़ें व छानकर पानी पी लें।
4. अदरक
अदरक में एंटी-इंफ्लेमेटरी व एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं।
इसमें पाया जाने वाला जिंजरोल सूजन को कम करने, गले में खराश व सूजन संबंधी बीमारियों को कम करने, पुराने दर्द को कम करने, मतली (Nausea) रोकने, कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद मिलती है।
अदरक का इस्तेमाल चाय के साथ-साथ कई तरह के व्यंजनों एवं मिठाइयों में भी किया जा सकता है।
5. पालक
पालक में कई आवश्यक पोषक तत्व तथा एंटीऑक्सिडेंट होते हैं, जैसे फ्लेवोनोइड, कैरोटीनॉयड (बीटा कैरोटीन), विटामिन सी, विटामिन ई आदि, जो सर्दी से होने वाली बिमारियों को रोकने के साथ इम्युनिटी बढाने में मदद करते हैं।
पोषक तत्वों का अधिकतम फायदा लेने के लिए इसे कम पका कर खाना चाहिए, लेकिन कच्चा नहीं।
6. खट्टे फल (सिट्रस / साइट्रस फ्रूट्स) एवं विटामिन सी
विटामिन सी संक्रमण से लड़ने में महत्वपूर्ण सफेद रक्त कोशिकाओं (WBC) के उत्पादन को बढ़ाता है। इम्युनिटी बढ़ाने के साथ-साथ विटामिन सी त्वचा के लिए भी फायदेमंद रहता है।
क्योंकि अपना शरीर विटामिन सी का उत्पादन या भंडारण नहीं करता है, अतः विटामिन सी की निम्न मात्रा दैनिक रूप से बाहर से लेने की आवश्यकता होती है -
व्यस्क महिला - 75 मिलीग्राम
व्यस्क पुरुष - 90 मिलीग्राम
लगभग सभी खट्टे फल विटामिन सी के उच्च स्रोत होते हैं। संतरे, कीनू, नींबू, चकोतरा (Grapefruit), अंगूर, कीवी फल आदि।
कीवी फल फोलेट, पोटेशियम, विटामिन के एवं विटामिन सी सहित आवश्यक पोषक तत्वों से भरे हुए होते हैं।
विटामिन सी के प्राकृतिक स्रोतों के अलावा पूरक आहार (सप्लीमेंट्स) भी एक विकल्प हो सकता है, लेकिन एक दिन में 2,000 मिलीग्राम (2 ग्राम) से अधिक न लें। बीमारी के समय 6-10 ग्राम तक ले सकते हैं।
7. बादाम
बादाम विटामिन ई का एक और उत्कृष्ट स्रोत हैं। इनमें मैंगनीज, मैग्नीशियम और फाइबर भी होते हैं।
एक व्यस्क व्यक्ति को प्रतिदिन 15 मिलीग्राम विटामिन ई की आवश्यकता होती है। आधा कप (लगभग 46 साबुत छिलके सहित) बादाम इस मात्रा के लिए काफी होते हैं।
हालाँकि, प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए एक मुट्ठी या एक चौथाई कप बादाम एक स्वास्थ्यवर्धक नाश्ता हो सकता है।
बादाम में स्वस्थ वसा भी होती है।
8. ब्लू बैरीज़
ब्लूबेरी में एंटीऑक्सीडेंट गुणों वाला एंथोसायनिन नामक फ्लेवोनोइड होता है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में मदद करता है, मुख्यतः श्वसन तन्त्र की इम्युनिटी पॉवर बढ़ाने में।
9. शकरकंद
शकरकंद की त्वचा का नारंगी रंग एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर बीटा कैरोटीन की वजह से होता है।
बीटा कैरोटीन विटामिन ए का एक अच्छा स्रोत है। यह त्वचा को स्वस्थ बनाने में तथा पराबैंगनी (यूवी) किरणों से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करता है।
10. ग्रीन टी
ग्रीन टी में फ्लेवोनोइड्स होते हैं, जो ठंड के खतरे को कम करके इम्यून सिस्टम को मजबूत बना सकते हैं।
फ्लेवोनोइड्स नामक एंटीऑक्सीडेंट चाय (ब्लैक टी) में भी पाये जाते हैं लेकिन ग्रीन टी निम्न कारणों से चाय से ज्यादा अच्छी होती है -
- इसमें कैफीन की मात्रा बहुत कम होती है, इसलिए यह ब्लैक टी या कॉफी से ज्यादा अच्छी होती है।
- ग्रीन टी में एक अन्य शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट एपिगैलोकैटेचिन गैलेट (EGCG) पाया जाता है, यह भी इम्युनिटी बढ़ता है।
- काली चाय के EGCG किण्वन प्रक्रिया की वजह से नष्ट हो जाते हैं, जबकि ग्रीन टी को स्टीम किया जाता है किण्वित नहीं, इसलिए इसमें EGCG संरक्षित रहते हैं।
- ग्रीन टी अमीनो एसिड L-theanine का भी एक अच्छा स्रोत है, यह T कोशिकाओं में रोगाणु से लड़ने वाले यौगिकों के उत्पादन में सहायता करता है।
11. ब्रॉकली
ब्रॉकली में विटामिन सी, ए, ई, मिनरल्स, फाइबर एवं सल्फोराफेन नामक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। इसके नियमित सेवन से प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत किया जा सकता है।
इसके पोषक तत्वों का अधिकतम फायदा लेने के लिए इसे बिना पकाए, अधपका या भाप में पका (Steaming) कर खाएं।
12. सूरजमुखी के बीज
सूरजमुखी के बीज एंटीऑक्सीडेंट विटामिन ई का एक समृद्ध स्रोत होते हैं।
विटामिन ई कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने वाले फ्री रेडिकल्स से लड़कर इम्युनिटी बढ़ा सकता है।
विटामिन ई के अन्य स्रोत हैं - एवोकाडो एवं गहरे हरे रंग वाली पत्तेदार सब्जियां।
इनमें फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, विटामिन बी -6, सेलेनियम भी प्रचूर मात्रा में पाये जाते है।
एक व्यस्क व्यक्ति की प्रतिदिन की सेलेनियम की आवश्यकता लगभग 50 ग्राम बीजों से पूरी हो जाती है।
सेलेनियम स्वाइन फ्लू (H1N1) वायरस के नियंत्रण में कारगर पाया गया है।
सूरजमुखी के बीज सलाद या स्वादिष्ट नाश्ते के रूप में खाए जा सकते हैं।
13. डार्क चॉकलेट
डार्क चॉकलेट में थियोब्रोमाइन नामक एंटीऑक्सिडेंट होता है, जो शरीर की कोशिकाओं को मुक्त कणों (फ्री रेडिकल्स) से बचाकर प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में मदद कर सकता है।
लेकिन, कैलोरी व संतृप्त वसा की उच्च मात्रा के कारण डार्क चॉकलेट को कम खाना चाहिए।
14. केफिर
केफिर एक किण्वित पेय है जिसमें स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद जीवित बैक्टीरिया होते हैं। ये मित्र बैक्टीरिया अन्य हानिकारक बैक्टीरिया से लड़ने, सूजन कम करने, व एंटीऑक्सीडेंट के रूप में इम्युनिटी बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं।
15. लाल शिमला मिर्च
लाल शिमला मिर्च विटामिन सी का एक उत्कृष्ट वैकल्पिक स्रोत है, साथ ही इसमें फलों की तरह चीनी भी नहीं होती है। शिमला मिर्च में 127 मिलीग्राम विटामिन सी होता है जो संतरे (45 मिलीग्राम) से लगभग 3 गुना अधिक होता है।
शिमला मिर्च में बीटा कैरोटीन भी प्रचूर मात्रा में होता है, जो विटामिन ए में बदल कर आंखों व त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करता है।
भाप में पकाने या उबालने के बजाय तलकर या भूनकर खाने से लाल शिमला मिर्च के पोषक तत्व बरकरार रहते हैं।
16. तैलीय मछली
सैल्मन, टूना, पाइलकार्ड्स एवं अन्य तैलीय मछली ओमेगा -3 फैटी एसिड का एक समृद्ध स्रोत होती हैं।
ओमेगा -3 फैटी एसिड के लंबे समय तक सेवन से रुमेटॉइड गठिया (RA) नामक पुरानी ऑटोइम्यून बीमारी का खतरा कम हो सकता है।
17. पपीता
पपीता विटामिन सी से स्मृद्ध फल है। एक मध्यम पपीते में दैनिक आवश्यकता से दोगुना विटामिन सी मिल सकता है।
पपीते में पेपैन नामक पाचक एंजाइम भी होता है जिसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी (सूजन-रोधी) प्रभाव होता है।
पपीते में पोटेशियम, मैग्नीशियम व फोलेट की अच्छी मात्रा होती है, संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए ये सब फायदेमंद होते हैं।
18. पोल्ट्री
चिकन सूप सूजन को कम करने में मदद कर सकता है, सर्दी के लक्षणों में सुधार कर सकता है।
पोल्ट्री जैसे चिकन एवं टर्की में विटामिन बी-6 की मात्रा अधिक होती है। लगभग 75 से 100 ग्राम हल्के टर्की या चिकन मांस में दैनिक आवश्यकता का लगभग एक तिहाई विटामिन बी -6 होता है। यह कई रासायनिक क्रियाओं के अलावा लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए भी महत्वपूर्ण है।
मुर्गी की हड्डियों को उबालकर बनाए गए शोरबा में जिलेटिन, कोंड्रोइटिन एवं अन्य पोषक तत्व होते हैं जो पाचन व इम्युनिटी को सही रखते हैं।
19. शंख (शेलफिश) -
शंख या शेलफिश की निम्न किस्में जिंक से भरपूर होती हैं - कस्तूरी (oysters), केकड़ा (crab), झींगा मछली (lobster), शंबुक (mussels)। प्रतिरक्षा कोशिकाओं के सुचारू कार्य के लिए जिंक की आवश्यकता भी रहती है। जिंक की दैनिक आवश्यकता वयस्क पुरुषों में 11 मिलीग्राम व वयस्क महिलाओं में 8 मिलीग्राम होती है। लेकिन बहुत अधिक जिंक प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य को बाधित कर सकता है।
20. एल्डरबेरी, एकिनेशिया -
ये दोनों जड़ी बूटी बेहतरीन प्राकृतिक एंटीवायरल होते हैं, विशेषकर ऊपरी श्वसन संक्रमण जैसे सर्दी व फ्लू के खिलाफ़।
विशेष नोट -
- उचित पोषण हेतु विविधता जरुरी है यानि इन खाद्य पदार्थों में से केवल एक खाने से बिमारियों से लड़ने में मदद नहीं मिलेगी, भले ही आप इसे लगातार खाते हों।
- न ही सारे खाद्य पदार्थों को खाने की आवश्यकता है, केवल इन में से जो आसानी से उपलब्ध हो उनका मिश्रण बना कर सेवन करें।
- किसी खाद्य पदार्थ का आवश्यकता से अधिक सेवन अधिक इम्युनिटी नहीं देगा, अतः जरुरत से ज्यादा ना खाएं।
- सही भोजन, जिसमे सभी आवश्यक तत्व संतुलित मात्रा में हो, का दैनिक सेवन इम्युनिटी बढ़ाने में कारगर साबित हो सकता है।
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