मासिक धर्म या माहवारी क्या हैं? माहवारी में क्या ध्यान रखें? मासिक धर्म व गर्भधारण में क्या सम्बन्ध है?
ईश्वर ने केवल महिलाओं (मादा प्राणियों) को ही गर्भधारण व संतानोत्पत्ति की क्षमता दी है। गर्भधारण कब हो, कब ना हो, कैसे हो आदि को निर्धारित करने के लिए महिलाओं में मासिक धर्म चक्र होता है।
MENSTRUAL CYCLE & MENSTRUATION |
Table Of Contents
- 👉 मादा प्रजनन तन्त्र
- 👉 सामान्य मासिक-धर्म चक्र
- 👉 मासिक-धर्म चक्र के चरण व नियंत्रण
- 👉 मासिक-धर्म चक्र के लक्षण
- 👉 माहवारी की देखभाल कैसे करें?
- 👉 प्रथम माहवारी (Menarche)
- 👉 रजोनिवृत्ति
- 👉 मासिक धर्म चक्र, गर्भाधान व गर्भ-निरोध
- 👉 गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण
- 👉 माहवारी को जल्दी लाना या आगे खिसकाना
- 👉 माहवारी की समस्याएं व असामान्य मासिक धर्म चक्र
- 👉 मिस्ड या अनियमित पीरियड्स
- 👉 प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (पीएमएस)
मासिक धर्म या माहवारी के बारे में जानने से पहले मादा प्रजनन तन्त्र के बारे में संक्षिप्त जानकारी लेते हैं।
मादा प्रजनन तन्त्र
मादा प्रजनन तन्त्र में निम्न मुख्य जननांग व सहायक जननांग होते हैं -
मुख्य जननांग -
फैलोपियन ट्यूब (दायीं व बांयी) - यहाँ अंडाशय से निकले अंडाणु को लपका जाता है, अंडाणु व शुक्राणु का मेल (निषेचन - Fertilization) होता है, तथा निषेचित अंडे (Zygote) को गर्भधारण हेतु गर्भाशय तक पहुँचाया जाता है।
गर्भाशय या बच्चेदानी (Uterus) - यह अंडा प्रत्यारोपण व गर्भधारण स्थान है जहाँ भ्रूण का विकास होता है।
गर्भाशय ग्रीवा (Cervix) - शुक्राणु यहाँ से होते हुए ऊपर की तरफ फैलोपियन ट्यूब तक जाते है, तथा प्रसव के समय शिशु यहाँ से बाहर निकलता है।
योनि-मार्ग (Vagina) - गर्भाशय ग्रीवा से योनि के बीच नलीनुमा सरंचना।
योनि या भग (Vulva) - स्त्री-बाह्यजननांग।
सहायक जननांग -
स्तन ग्रन्थियां (Mammary Glands)सामान्य मासिक-धर्म चक्र (Normal Menstrual Cycle)
मासिक-धर्म चक्र क्या है?
एक महिला के शरीर को गर्भधारण हेतु तैयार करने के लिए होने वाले क्रमागत बदलावों के चक्र को मासिक धर्म चक्र कहते हैं।
लगभग हर महीने निषेचित अंडे को प्रत्यारोपित करने के लिए गर्भाशय एक नई परत (एंडोमेट्रियम) का निर्माण करता है।
यदि, गर्भधारण हेतु कोई निषेचित अंडा नहीं मिलता है, तो गर्भाशय अपनी नई परत (एंडोमेट्रियम) को छोड़ देता है, जो रक्तस्राव के रूप में योनि-मार्ग से बाहर निकलती है।
यह रक्तस्राव सामान्य रूप से 4 से 7 दिनों तक होता है, इसे मासिक रक्तस्राव (Menorrhea) या माहवारी (Menstruation) या मासिक धर्म (Bleeding Periods) कहा जाता है, जो कि महिलाओं में किशोरावस्था से लेकर रजोनिवृत्ति (लगभग 50 वर्ष की आयु) तक होता है।
रक्तस्राव के पहले दिन से अगले रक्तस्राव के पहले दिन के बीच की समय अवधि को एक मासिक-धर्म चक्र या ऋतु-धर्म चक्र (Menstrual Cycle -M.C.) कहा जाता है, जो औसतन 28 दिनों का होता है, हालाँकि थोड़ा कम या ज्यादा (21 से 37 दिन) हो सकता है।
लड़कियों में पहली माहवारी (MENARCHE) लगभग 11 से 14 साल की उम्र में आती है। किशोरावस्था (Teenage) व 40 की उम्र के आसपास चक्र की अवधि व रक्तस्राव की मात्रा में बदलाव हो सकता है।
- किशोरावस्था (20 वर्ष के आसपास) - मासिक धर्म चक्र 45 दिन तक की अवधि का हो सकता है।
- 30 वर्ष के आसपास - मासिक धर्म चक्र की अवधि 21-35 दिन एवं चक्र लगभग नियमित होते हैं।
- 40 वर्ष के आसपास - मासिक धर्म चक्र की अवधि सबसे छोटी होती है, लेकिन चक्र लगभग नियमित होते हैं।
- रजोनिवृत्ति से पहले (45-55 वर्ष) - मासिक धर्म चक्र की अवधि अधिक लम्बी होती जाती है, एवं चक्र अनियमित होने लगते हैं।
नोट - यदि चक्र में बहुत बड़ा बदलाव दिखाई दे, जैसे - लगातार तीन या अधिक बार मासिक रक्तस्राव की अवधि 7 दिनों से अधिक हो, रक्तस्राव बहुत ज्यादा हो, दो पीरियड्स के बीच में ब्लीडिंग या पैल्विक दर्द हो, तो अपने डॉक्टर से सम्पर्क करें, अथवा प्राकृतिक आयुर्वेदिक उपचार के लिए हमसे सम्पर्क करें।
मासिक-धर्म चक्र के चरण व नियंत्रण
मासिक-धर्म चक्र को हार्मोन द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरोन के स्तर के क्रमिक रूप से बढ़ने व घटने से गर्भाशय में बदलाव होता है।
माहवारी के बाद फोलिकुलर या इस्ट्रोजन चरण होता है, जिसके अंत में ओव्यूलेशन होता है।
ओव्यूलेशन के बाद ल्युटियल या प्रोजेस्टेरोन चरण होता है जो या तो गर्भावस्था में जाता है, या फिर माहवारी में।
- एक सामान्य चक्र के शुरुआत में इस्ट्रोजन के प्रभाव से गर्भाशय की परत (Endometrium) का निर्माण होता है, तथा चक्र के मध्य में (लगभग 14 वें दिन) अंडाशय से एक अंडा निकलता है (ओव्यूलेशन)।
- तत्पश्चात प्रोजेस्टेरोन का स्तर बढ़ता है जो गर्भाशय की परत को निषेचित अंडे के प्रत्यारोपण (गर्भधारण) के लिए तैयार करता है, तथा अगले 9 माह तक गर्भावस्था को नियंत्रित करता है।
- यदि गर्भाशय की परत को प्रत्यारोपण के लिए निषेचित अंडा नहीं मिलता है तो प्रोजेस्टेरोन का स्तर कम हो जाता है, गर्भाशय की परत टूटनी शुरू हो जाती है फलस्वरूप माहवारी या रक्तस्राव (मासिक धर्म) होता है।
- इसके साथ ही इस्ट्रोजन का स्तर बढ़ना शुरू हो जाता है तथा फिर से नये चक्र की शुरुआत हो जाती है।
मासिक-धर्म चक्र के सामान्य लक्षण
कुछ महिलाओं में दर्द या अन्य समस्या नहीं होती है, जबकि कुछ महिलाओं में मासिक धर्म से पहले व मासिक धर्म के दौरान दर्द या अन्य समस्याएं होती हैं।
कई महिलाओं में मासिक धर्म से लगभग एक सप्ताह पहले PRE-MENSTRUAL या माहवारी-पूर्व लक्षण दिखाई देते हैं जैसे अधिक तनावग्रस्त या क्रोधित महसूस करना, पेट में पानी या हवा भरी हुई (पेट फूला हुआ) लगना, स्तन कोमल महसूस होना, मुंहासे होना, शरीर में कमजोरी (ऊर्जा में कमी) महसूस होना आदि।
मासिक धर्म से एक या दो दिन पहले पेट, पीठ या पैरों में दर्द (ऐंठन) होना शुरू हो सकता है। कुछ महिलाओं में सिरदर्द, दस्त या कब्ज, मतली, चक्कर आना या बेहोशी भी हो सकती है।
माहवारी के शुरुआती एक-दो दिनों में ये सभी लक्षण स्वतः दूर हो जाते हैं।
मासिक धर्म चक्र के मध्य में (लगभग 14 वें दिन) अंडाशय से एक अंडा निकलता है, उस समय पेट के निचले हिस्से में दर्द हो सकता है, बेचैनी, व लाल धब्बे हो सकते हैं। हालाँकि, ये सब सामान्य हैं।
यदि माहवारी-पूर्व के लक्षणों से दैनिक जीवन में अधिक परेशानी होती है, तो इस स्तिथि को प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (पीएमएस) कहा जाता है।
महिलाएं रक्तस्राव एवं अन्य लक्षणों की देखभाल कैसे करें?
रक्तस्राव की देखभाल के लिए पैड, टैम्पोन या मेंस्ट्रुअल कप का उपयोग किया जा सकता है। हर 4 से 8 घंटे में टैम्पोन को बदलना चाहिए। मेंस्ट्रुअल कप 12 घंटे तक पहना जा सकता है। रात के समय पैड या मेंस्ट्रुअल कप सही रहते हैं।
नियमित व्यायाम व स्वस्थ आहार से लक्षणों में सुधार किया जा सकता है। शराब व कैफीन को सीमित करें, तनाव कम करने की कोशिश करें।
अधिक दर्द हो तो पलंग पर लेट कर घुटनों के नीचे तकिया रखकर पैरों को ऊपर उठाएं, अथवा एक तरफ करवट लेकर घुटनों को छाती की तरफ लाएं, इससे पीठ के दर्द को दूर करने में मदद मिलेगी।
हीटिंग पैड, गर्म पानी की बोतल, या गर्म स्नान से भी ऐंठन को कम किया सकता है।
दर्द और रक्तस्राव को कम करने के लिए मासिक धर्म से पहले या शुरुआत में दर्द-निवारक दवा जैसे आइबुप्रोफेन या नेप्रोक्सन (अपने चिकित्सक से परामर्श लेकर) ली जा सकती है।
अथवा प्राकृतिक आयुर्वेदिक उत्पादों के उपयोग से माहवारी या मासिक धर्म के दिनों में राहत पायें, जानें कैसे?
प्रथम माहवारी (Menarche)
किसी लड़की या किशोरी के पहले मासिक धर्म या माहवारी को मेनार्की (MENARCHE) कहते हैं।
एक लड़की की प्रथम माहवारी प्रायः 9 से 15 साल की उम्र में होती है, जब उसके शरीर में बदलाव जैसे स्तन बढ़ने, जांघों के बीच के बाल, अंडरआर्म (बगल) के बाल बढ़ने व कुल्हे चौड़े होने शुरू हो जाते हैं।
यह एक लड़की के औरत बनने की प्रक्रिया की शुरुआत है। इसके बाद वह लड़की गर्भवती हो सकती है।
प्रथम माहवारी व उसके बाद की कुछ माहवारियां अनियमित व कम रक्तस्राव वाली हो सकती हैं। प्रथम माहवारी से 2 साल के भीतर दो तिहाई लड़कियों में मासिक धर्म नियमित हो जाता है।
यदि 15 साल तक प्रथम माहवारी नहीं होती है तो अपने चिकित्सक से सम्पर्क करें।
रजोनिवृत्ति व पेरिमेनोपॉज़ल मासिक धर्म चक्र (Menopause and Perimenopausal Menstrual Cycle - PMC)
मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति का अर्थ होता है - जब उम्रदराज महिलाओं में बिना गर्भावस्था के माहवारी पिछले 12 महीनों से बंद हो।
पेरिमेनोपॉज़ का अर्थ होता है - रजोनिवृत्ति के आसपास।
रजोनिवृत्ति से 2-8 साल पहले हार्मोन के स्तर में बदलाव होना शुरू हो जाता है, फलस्वरूप मासिक चक्र अधिक लंबा व अनियमित होता जाता है।
अधिकतर महिलाओं में ये लक्षण 39 से 51 साल की उम्र के बीच दिखाई देते हैं। इस दौरान प्रजनन क्षमता स्वाभाविक रूप से कम होने लगती है।
कुछ महिलाओं में हार्मोन के स्तर में अधिक बदलाव नहीं दिखता है, जबकि कुछ महिलाओं में गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे - अत्यधिक रक्तस्राव, अनिद्रा, सिरदर्द, गुमसुम रहना, दिल की धड़कन व मिजाज/मूड बदलना, चिड़चिड़ापन, अवसाद, चिंता आदि।
अगर इन लक्षणों से दैनिक जीवन अधिक बाधित हो रहा हो तो अपने चिकित्सक से सम्पर्क करें।
मासिक धर्म चक्र, गर्भाधान (Conception) व गर्भ-निरोध (Contraception)
लगभग हर दम्पति के दाम्पत्य जीवन में ये दो सवाल कभी ना कभी अवश्य होते हैं -
कौनसे दिनों में गर्भ नहीं ठहरता है (सुरक्षित दिन)?
तथा
सन्तान प्राप्ति या गर्भाधान हेतु कौनसे दिन सही होते हैं?
गर्भ ठहरने (गर्भाधान) के लिए सक्रिय अंडाणु तथा सक्रिय शुक्राणु का मेल (निषेचन - Fertilization) होना जरुरी होता है।
जैसा कि पहले बताया माहवारी खत्म होने बाद फोलिकुलर चरण शुरू होता है जिसमें अंडाशय (Overy) की एक फ़ोलिकल में अंडाणु का क्रमिक विकास होना शुरू होता है। योनि फूलने लगती है, योनि-स्त्राव मात्रा में ज्यादा, चिपचिपा व गाढ़ा होने लगता है, तथा कामेच्छा बढ़ती जाती है।
मासिक चक्र के मध्य में (लगभग 14 वें दिन) फ़ोलिकल से अंडाणु बाहर निकलता है (अन्डोत्सर्जन Ovulation)। इस दिन कामेच्छा सर्वाधिक होती है, पेडू में दर्द हो सकता है जो सहवास करने के बाद सही हो जाता है।
यदि ओवुलेशन के बाद 24 घंटे तक अंडाणु का एक सक्रिय शुक्राणु से मेल नहीं हो पाता है तो अंडाणु नष्ट हो जाता है तथा ल्युटियल चरण शुरू हो जाता है, लगभग 29 वें (यानि अगले चक्र का पहले दिन) दिन माहवारी शुरू हो जाती है।
महिला के शरीर में प्रवेश करने के बाद शुक्राणु की औसत सक्रिय आयु 3 दिन होती है, जो कि अधिकतम 5 दिन हो सकती है। अर्थात इस दौरान अगर शुक्राणु का मेल सक्रिय अंडाणु से नहीं होता है तो शुक्राणु निष्क्रिय या नष्ट हो जाता है।
इस प्रकार मासिक चक्र के 8 वें दिन से 20 वें दिन गर्भधारण की सम्भावना रहती है, तथा 14 वें दिन या ओवुलेशन के दिन गर्भधारण की सम्भावना सर्वाधिक होती है।
शेष दिन (1 से 7, तथा 21 से माहवारी तक) गर्भधारण की कोई सम्भावना नहीं होती है।
अतः सन्तान प्राप्ति या गर्भाधान के लिए मासिक चक्र का 14 वां दिन सबसे उपयुक्त रहता है।
क्या माहवारी के दिन सन्तान प्राप्ति के लिए सही होते हैं? जी नहीं, यह एक मिथक है, हाँ, लाखों-करोड़ों में किसी एक के साथ अपवादस्वरूप ऐसा हो जाये तो अलग बात है।
परिवार नियोजन का प्राकृतिक तरीका - अगर आप संतान नहीं चाहते हैं तो मासिक चक्र के 8 वें दिन से 20 वें दिन के बीच सहवास से बचें अथवा इन दिनों किसी गर्भ-निरोधक (Contraceptive) युक्ति का प्रयोग करें जैसे कंडोम, टुडे (Intra-vaginal Contraceptive Pills), आदि, अथवा वीर्य-स्खलन योनि से बाहर करें।
गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण
- मिस्ड पीरियड्स, लगातार दो से अधिक मासिक धर्म मिस होना।
- पेशाब अधिक आना।
- थकान होना।
- स्तन कोमल होना व आकार में वृद्धि होना।
- मतली, उबाक या उल्टी होना।
क्या माहवारी को जल्दी लाया या आगे खिसकाया जा सकता है?
कई बार किसी पार्टी, विवाह, धार्मिक या सामाजिक आयोजन के लिए या कई अन्य कारणों से महिलाएं अपनी माहवारी या पीरियड्स को सम्भावित समय से पहले लाना चाहती हैं या और आगे खिसकाना चाहती हैं।ऐसा करने के लिए अधिकतर महिलाएं मेडिकल स्टोर से दवा लेती हैं।
इन दवाओं को योग्य चिकित्सक से परामर्श के बिना नहीं लें, क्योंकि ये दवाएं हॉर्मोन होती हैं तथा माहवारी या प्रजनन तन्त्र की समस्याओं के इलाज के लिए होती है।
इनके अत्यधिक दुष्प्रभाव या साइड-इफ़ेक्ट होते हैं, जैसे - चेहरे पर बाल बढ़ना, स्तन बढ़ना, मुंह सुखना, माईग्रेन होना, अवसाद होना, कब्ज या दस्त होना, वजन घटना या बढ़ना, साँस लेने में दिक्कत, दिखाई देना कम होना आदि ।
कुछ महिलाएं प्राकृतिक या आयुर्वेदिक नुस्खों का उपयोग करती हैं जैसे दालचीनी पाउडर, सहजन की पत्तियां व फूल, नारियल पानी, मैथी, तिल, सौंफ, धनियाँ, जीरा, अजवायन, अंडे, विटामिन सी युक्त फल (निम्बू, संतरा, कीवी, आंवला), टमाटर, ब्रोकली, पालक, अदरक की चाय, पपीता, अनार, अनानास, कद्दू, गाजर, गुड़, खजूर, आदि का सेवन करती हैं।
हालाँकि, आयुर्वेदिक नुस्खों का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता, हो सकता है कि इनसे माहवारी जल्दी आ जाये, लेकिन ये नुस्खे भी माहवारी व मासिक धर्म चक्र को नियमित करने के लिए ही होते हैं।
इस प्रकार ऐसी कोई दवा होती ही नहीं है जो केवल माहवारी को आगे या पीछे करे।
अतः इन दवाओं का उपयोग ना करने की कोशिश करें या चिकित्सक से परामर्श लेकर करें, इन्हें बार-बार उपयोग नहीं करें, गर्भावस्था की जाँच किये बिना काम में नहीं लें।
माहवारी की समस्याएं व असामान्य मासिक धर्म चक्र
इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरोन के क्रमिक स्तर में किसी भी तरह के असंतुलन से मासिक धर्म के नियमित चक्र व प्रजनन क्षमता में बदलाव दिखाई देते हैं जैसे - रक्तस्राव की मात्रा व अवधि कम या ज्यादा होना, मासिक धर्म चक्र की लंबाई कम या ज्यादा होना, असामान्य दर्द होना, असमय (पीरियड्स के बीच में) रक्तस्राव व दर्द होना आदि।
इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के असंतुलन के अलावा मासिक धर्म चक्र को प्रभावित करने वाले कारक हैं - गर्भनिरोधक गोलियां, मोटापा, शरीरमें वसा की कमी, वजन अचानक बहुत कम हो जाना, तनाव या बहुत कठिन व्यायाम आदि।
सामान्य रक्तस्राव (Menorrhea) - रक्तस्राव की मात्रा लगभग 50 ml होती है।
अतिरज या अत्यार्तव (Hypermenorrhea or Menorrhagia) - रक्तस्राव की मात्रा 90 ml से अधिक होती है।
अल्परज (Hypomenorrhea) - रक्तस्राव की मात्रा 30 ml से कम होती है।
कष्टार्तव (Dysmenorrhea) - कष्टप्रद माहवारी (Dys = Difficult)।
रक्तप्रदर या अतिकालार्तव (Metrorrhagia) - रक्तस्राव की अवधि 7 दिनों से अधिक होना या रक्तस्राव का असमय (पीरियड्स के बीच में) होना।
बहुरज-चक्र (Polymenorrhea) - मासिक धर्म चक्र की अवधि 21 दिन से कम होना यानि माहवारी का बार-बार या जल्दी आना।
न्यूनरज-चक्र (Oligomenorrhea) - मासिक धर्म चक्र की अवधि 37 दिन से अधिक (अधिकतम 90 दिन) होना यानि माहवारी का कम या देर से आना।
रजोरोध या ऋतुरोध (Amenorrhea or Apophraxis or Missed Periods) - जब माहवारी 90 दिनों से नहीं आई हो (बिना गर्भावस्था के)।
Note - माहवारी की समस्याएं एवं अन्य प्रमुख स्त्री-रोगों की विस्तृत जानकारी व उनके आसान आयुर्वेदिक उपाय जानने के लिए हमारी अगली पोस्ट पढ़ें या 👉 यहाँ क्लिक करें।
मिस्ड या अनियमित पीरियड्स
ज्यादातर महिलाओं को हर साल 11 से 13 माहवारी होती है, लेकिन कम या ज्यादा भी हो सकती है।
शुरुआती किशोरावस्था में व रजोनिवृत्ति से पहले माहवारी अनियमित हो सकती है।
पीरियड मिस होने के कारण क्या होते हैं?
किसी महिला के पीरियड मिस होने का एक कारण गर्भावस्था है, गर्भावस्था में पीरियड्स नहीं होते हैं।
अन्य कारण इस प्रकार हैं -
- हार्मोन लेवल में गड़बड़ी।
- स्तनपान कराने वाली महिलाओं में अक्सर माहवारी नहीं होती है।
- शारीरिक वजन का अत्यधिक कम होना या मोटापा।
- अनियमित खुराक - भूख न लगना या अत्यधिक भूख लगना।
- अत्यधिक शारीरिक व्यायाम जैसे एंड्यूरेन्स एथलीटों में मिस्ड पीरियड्स (Amenorrhea) आम है (साइकिलिस्ट, रोवर, तैराक, धावक, स्कीयर आदि)।
- भावनात्मक स्ट्रेस (तनाव)।
- बीमारी जैसे इम्परफोरेट हाइमन, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS), मधुमेह/डायबिटीज, क्षय रोग/तपेदिक (T.B.), लीवर/यकृत रोग, संग्रहणी या क्षोभि-विकार (IBS) या कोई अन्य बीमारी।
- यात्रा।
- कुछ दवाएं जैसे गर्भ-निरोधक दवाएं, अवैध ड्रग्स।
- सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी।
पीरियड मिस होने पर क्या करें?
- यदि गर्भावस्था नहीं है या जाँच नेगेटिव है, तो पीरियड मिस होने पर चिंता न करें, अगले माह स्वतः माहवारी हो जाएगी, अथवा चिकित्सक से सम्पर्क करके फोलिक एसिड की टेबलेट ली जा सकती है।
- संतुलित आहार लें।
- ध्यान, योग करें।
- धूम्रपान व अन्य तंबाकू उत्पाद, शराब, नशीली दवाओं उपयोग न करें।
- कैफीन से बचें (कॉफी व चाय का सेवन न्यूनतम हो)।
- एथलीट लडकियों को चिकित्सक से सम्पर्क करके हार्मोन व कैल्शियम सप्लीमेंट्स लेने चाहिए।
आयुर्वेदिक समाधान के लिए हमसे सम्पर्क करें।
प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (पीएमएस) क्या होता है?
हर महीने माहवारी से लगभग 1 से 2 सप्ताह पहले शारीरिक व मूड से संबंधित कुछ लक्षण जैसे स्तन कोमल होना, मांसपेशियों में दर्द होना आदि दिखाई देते है, इन्हें प्रीमेंस्ट्रुअल लक्षण कहते हैं।
आमतौर पर ये लक्षण सामान्य ही होते है, तथा माहवारी के पहले एक-दो दिन में गायब हो जाते है, परन्तु कभी-कभी ये लक्षण दैनिक जीवन में बाधा डालने लग जाते हैं, तब उन्हें प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (PMS) या Premenstrual Dysphoric Disorder (PMDD) कहा जाता है।
प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम का क्या कारण होता है?
इसका वास्तविक कारण अभी ज्ञात नहीं है, लेकिन हार्मोन परिवर्तन, आनुवंशिकता आदि इससे जुड़े हुए हैं।
प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं?
पेट में सूजन/आफरा, नरम व फुले हुए स्तन, ऊर्जा की कमी, सिरदर्द, मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द, ऐंठन, पीठ के निचले हिस्से में दर्द, उदासी, क्रोध, चिड़चिड़ापन या चिंता, एकाग्रता में कमी, भोजन की लालसा (विशेष रूप से मीठे व नमकीन की), बहुत ज्यादा या बहुत कम सोना, सहवास की ईच्छा में कमी, कब्ज या दस्त, परिवार व दोस्तों से दूरी आदि।
कभी-कभी थायराइड की समस्या में भी पीएमएस जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, अतः थायराइड की जाँच करवाएं।
पीएमएस का इलाज कैसे किया जाता है?
जीवनशैली में बदलाव करें, पर्याप्त नींद लें, स्वस्थ भोजन, ध्यान, योग व नियमित व्यायाम करें, शराब व कैफीन में कटौती करें, स्पोर्ट्स ब्रा पहनें।
चिकित्सक की सलाहानुसार ये उपचार लें -
- सुजनरोधी या दर्द-निवारक दवाएं (Ibuprofen, Naproxen),
- सेलेक्टिव सेरोटोनिन रि-अपटेक इनहिबिटर (SSRI - citalopram, fluoxetine, paroxetine)
- एंटीडिप्रेसेंट
- हार्मोनल बर्थ कंट्रोल दवाएं
- मूत्रवर्धक (Diuretic) दवाएं (पेट के आफरे व स्तनों की कोमलता में कमी के लिए)।
अन्य उपचार
- एक्यूपंक्चर या एक्यूप्रेशर
- Vitex agnus-castus या Chaste Berry या Monk's Pepper का फल
- कैल्शियम सप्लीमेंट।
- Evening Primrose Oil
- ब्राइट लाइट थेरेपी
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