पेट : समस्याएं अनेक !!! समाधान एक ?
Solution of Digestive Problems.
पेट की खराबी - कारण, लक्षण, उपचार, आयुर्वेदिक इलाज व बचाव
7 Common Digestive Problems - Causes, Symptoms, Treatment, Ayurvedic Solution, and Prevention.
पेट की खराबी या पाचन तंत्र की समस्याएं शरीर में अधिकतर व्याधियों की जड़ होती हैं, यानि पेट खराब स्वास्थ्य खराब।
पेट की खराबी के कई कारण, लक्षण, उपचार, आयुर्वेदिक इलाज व बचाव हो सकते है।
पाचन तंत्र में अनेकों विकार उत्पन्न होते हैं लेकिन उनमें से कुछ प्रमुख विकार - अपच, एसिड भाटा, आमाशय के अल्सर, IBD, IBS, दस्त, कब्ज, बवासीर, फिशर, लिवर की बीमारियां आदि के बारे में संक्षिप्त परन्तु महत्त्वपूर्ण जानकारी इस लेख में दी गयी है, आशा है आपको पढ़कर फायदा होगा।
अगर आपको पेट व पेट की खराबी से सम्बन्धित कोई अन्य जानकारी चाहिए तो हमें ई-मेल करें या इस लेख के अंत में दिए गए कमेंट-बॉक्स में लिखें, आपके प्रत्येक सवाल का समुचित समाधान बताया जायेगा।
पाचन तंत्र की सामान्य कार्य-प्रणाली:
- पाचन तंत्र में मुख, भोजन नली या इसोफेगस, आमाशय (stomach/जठर/उदर/पेट), छोटी आंत, बड़ी आंत, मलाशय, गुदा व सहायक अंग यकृत (liver/जिगर), पित्ताशय (gall bladder), अग्नाशय (pancreas) शामिल होते हैं।
- पाचन क्रिया मुख से ही शुरू हो जाती है, मुख में दांत, जीभ व लार द्वारा भोजन को छोटे टुकड़ों में बांटा जाकर अर्द्ध तरल के रूप में भोजन नली से होते हुए आमाशय तक पंहुचाया जाता है।
- आमाशय में जठर रस (जठराग्नि - गैस्ट्रिक ऐसिड) से भोजन पचाया जाता है।
- आमाशय में बिना पचे भोजन को छोटी आंत में लिवर से आये पित्त व अग्नाशय से आए एंजाईमों की मदद से पचाया जाता है तथा आवश्यक पोषक तत्वों का शरीर में अवशोषण किया जाता है।
- बड़ी आंत में बचे हुए पोषक तत्व व पानी का अवशोषण करने के बाद व्यर्थ पदार्थों को मल के रूप में शरीर से बाहर निकालने के लिए मलाशय तक आगे बढ़ाया जाता है।
- मलाशय से समय समय पर गुदा मार्ग द्वारा मल त्याग किया जाता है।
- लिवर शरीर का सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण अंग होता है, बहुत सारे जैविक कार्य करने के साथ साथ यह पित्त (bile juice) का निर्माण करता है जो कि पित्ताशय में संचय किया जाता है, यहाँ से जरुरत के समय पित्त नली द्वारा छोटी आंत तक पंहुचाया जाता है।
- अग्नाशय छ: तरह के पाचक एंजाईम स्त्रावित कर एक नली द्वारा छोटी आंत तक पंहुचाता है।
पाचन तंत्र की इस कार्य-प्रणाली में किसी भी अंग में किसी भी कारण से किसी भी तरह की कोई गड़बड़ पाचन विकारों को जन्म देती है।
पेट की खराबी के कुछ प्रमुख कारण व लक्षण
1. गैस, एसीडिटी, अपच, बदहजमी Acidity, Indigestion
अनियंत्रित व असंतुलित खानपान व दिनचर्या, कुछ बीमारियां व दवाओं के दुष्प्रभाव आदि कई कारणों से भोजन सही ढंग से पच नहीं पाता है।
खराब हाजमे की वजह से पेट में गैस/आफरा, एसीडिटी (Acidity), जलन (Heart burn), खट्टी डकार, सांसों में बदबू, भूख न लगना, निगलने में परेशानी, पेट भरा-भरा लगना, जी मिचलाना, दस्त आदि दिक्कतें होना आजकल आम बात हो गई है।
गैस का बनना व मुख तथा गुदा के रास्ते से बाहर निकलना सामान्य प्रक्रिया है, परन्तु कुछ खाद्य पदार्थ, तनाव आदि की वजह से पेट में गैस अधिक मात्रा में बनती है जो कि विकार उत्पन्न करती है।
2. कब्ज व कब्ज जनित जटिलताएँ
मल त्यागने की प्रवृति में कमी तथा कठिनाई को कब्ज कहते हैं।
कब्ज के लक्षण
- शौच क्रिया में कठिनाई व दर्द।
- सामान्य से कम मात्रा में मल का निकास।
- मल सुखा, कठोर, गांठदार अथवा रक्त युक्त।
- पेट में दर्द, ऐंठन, मरोड़, गैस, आफरा।
- जी घबराना, उबाक, मतली, असहजता।
- भूख में कमी।
- जीवन गुणवत्ता में कमी व अवसाद।
कब्ज के कारण
- शरीर में पानी की कमी।
- भोजन में रेशों (फाइबर) की कमी।
- खानपान में बदलाव।
- कम खुराक।
- शारीरिक निष्क्रियता।
- लम्बी यात्रा।
- तनाव।
- शौच शंका होने पर मल त्याग नहीं करना या जबरन रोके रखना।
- सोडा, कॉफी, शराब का सेवन।
- दवाओं के दुष्प्रभाव या साइड इफेक्ट जैसे अफीम, दर्द निवारक, एंटेसिड, एंटीहिस्टामिनिक, कैल्शियम व आयरन सप्लीमेंटस, बीपी व मिर्गी की दवाएं, मूत्रल, कीमोथैरेपी आदि।
- कुछ बीमारियां जैसे डायबिटीज, IBS, रक्त कैल्शियम की कमी या अधिकता, पैराथॉइरॉइड की अधिक सक्रियता या थॉइरॉइड की कम सक्रियता, आंतों के कैन्सर, याद्दाश्त में कमी, मेरूदंड की तकलीफ, गर्भावस्था आदि ।
कब्ज का उपचार
आधुनिक चिकित्सा पद्धति में कब्ज के उपचार हेतु विभिन्न प्रकार के Laxatives, stool softners, enema, suppository आदि उपयोग में लिए जाते है।
कब्ज जनित जटिलताएं :-
गुदा दरार ( Anal fissure / ulcer)
कठोर मल के कारण गुदा की भीतरी दीवार पर छोटी दरारें या घाव हो जाते हैं जिससे गुदा में खुजली होना, मल में खून, मल त्याग में दर्द आदि समस्याएं होती है।
घरेलु उपचार में हिप बाथ - गर्म पानी के टब में गुदा क्षेत्र को 2-3 मिनट के लिए 10-15 दिन तक डुबोया जाता है।
Fecal Impaction
कठोर मल मलाशय या बड़ी आंत में चिपक / अटक जाता है जिससे पेट में एंठन, गैस, आफरा जैसी दिक्कतें होती है।
बवासीर / मस्से / Piles / Hemorrhoids
गुदा की रक्त वाहिकाएं कठोर मल व मल त्याग के लिए लगाए गए अतिरिक्त दबाव की वजह से सूज कर बड़ी व कठोर हो जाती है जिससे मल त्याग के वक्त दर्द व रक्त स्राव होता है।
3. दस्त
अनियमित खानपान के अलावा संक्रमण (बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ, कृमि, फंगस आदि), कुछ रसायन आदि कई कारणों से दस्त सकती है।
दस्त होने पर योग्य चिकित्सक से उपचार करवाएं।
अगर दस्त लम्बे समय तक रहे व बदहजमी की वजह से हो तो यहाँ बताए गए उपाय काम में लें।
4. एसिड भाटा रोग/Acid Reflux/GERD (Gastro Esophageal Reflux Disease)
एसिड भाटा रोग में आमाशय का एसिड मिश्रित भोज्य ऊपर की तरफ भोजन नली व मुख में आ जाता है जिससे सीने व भोजन नली में जलन होती है तथा मुख कड़वा हो जाता है।
5. पेट के अल्सर (Peptic ulcer)
आमाशय की भीतरी दीवार पर होने वाले घाव।
लक्षण - पेट में दर्द, जलन, उबाक, उल्टी, भोजन वापिस बाहर आना ( regurgitation) आदि।
6. IBD, IBS व Celiac रोग
IBD - Inflammatory Bowel Disease-
यह एक Autoimmune रोग है जिसमें आंतों में जलन होती हैl यह रोग दो प्रकार का हो सकता है -- Crohn's Disease - मुख्यतः छोटी आंत में जलन।
- Ulcerative Colitis - बड़ी आंत में जलन व घाव।
IBS - Irritable Bowel Syndrome (संग्रहणी अथवा क्षोभी आंत्र विकार)-
पेट में रह - रह कर हल्का दर्द, एंठन/मरोड़, कभी कब्ज कभी दस्त, शौच के बाद लगता है कि पूरा खाली या साफ नहीं हुआ, चिंता, बैचेनी, अवसाद (डिप्रेशन), अनिद्रा आदि।जांचें सारी सामान्य होती है।
Celiac Disease-
ग्लूटेन नामक प्रोटीन से छोटी आंत की भीतरी दीवार पर जलन व घाव हो जाते है।ग्लूटेन गेंहू, बाजरा, राई आदि में पाई जाती है।
दस्त, पेट दर्द, चिड़चिड़ापन, उदासी आदि या कोई लक्षण नहीं।
7. लिवर रोग ( Liver diseases)
कारण-
वायरस व अन्य संक्रमण, कुछ दवाएं, जहर, शराब, मोटापा, डायबिटीज, वसा व ट्राईग्लीसराईड की अधिकता, आनुवंशिकता आदि लिवर के नुकसान का कारण होते हैं।
लक्षण-
आँखों व त्वचा में पीलापन, पेट दर्द व पेट में सूजन, पैर व टखनों में सूजन, त्वचा में खुजली, मूत्र पीला अथवा गहरा, मल पीला, जी मिचलाना, उल्टी, थकावट व सिर दर्द, भूख में कमीं आदि व कभी कभी कोई लक्षण नहीं।
प्रमुख लिवर विकार -
हेपेटाइटिस - लिवर में सूजन, दर्द व जलन।
सिर्रोसिस - लिवर कठोर व बड़ा हो जाता है।
पीलिया - पित्त लवण असंतुलन।
पित्ताशय की पथरी।
पेट की खराबी (पाचन तंत्र की समस्याओं) का ईलाज
गंभीर रोगी कृपया संबंधित चिकित्सक से उचित उपचार कराये।
एलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेदिक औषधियां सभी पाचन तंत्र के ईलाज में अपना योगदान देते हैं।
पेट की पुरानी, दीर्घकालीन व अपेक्षाकृत मंद प्रवृति की खराबी या समस्याओं के इलाज के लिए अथवा पाचन तन्त्र को स्वस्थ व सुचारू रखने के लिए स्वस्थ जीवनशैली व आयुर्वेद का सहारा लें।
आयुर्वेद में हिमसार, मकोय, कालमेघ, भूमिआमलकी, कुटकी, जौ, कासामृद, अजवायन, रेवनचीनी, आंवला, हरड़, बहेड़ा, दारूहरिद्रा, कटेली फूल, चित्रकमूल, गुडुची, विदंग, परपटा, पुनर्नवा, भृंगराज, ईमली, अमलतास, मुलेठी आदि जड़ी - बुटियाँ पाचन तंत्र के लगभग सभी विकार सही करने में सक्षम होती हैं।
इन्टरनेट व सोशल मीडिया पर पेट की खराबी के इलाज से सम्बन्धित असंख्य नुस्खे व जानकरियां उपलब्ध हैं, आप उनमें से किसी अच्छे नुस्खे का अपनी आवश्यकता, सुविधा व जेब के अनुसार चयन कीजिये, अपने चिकित्सक या वैद्य से परामर्श कीजिये तथा उसे आजमायें।
आप कोई भी ईलाज ले रहे हैं, आपको फायदा जरूर हो रहा होगा, लेकिन क्या आप पूरी तरह से संतुष्ट हैं, अगर नहीं है तो क्या आप पाचन तंत्र संबंधी समस्याओं जैसे गैस, एसीडिटी, बदहजमी, गर्ड, IBD, IBS, अल्सर, भूख न लगना, कब्ज, दस्त, लिवर सिर्रोसिस, पीलिया आदि के लिए एकमेव आसान, प्रभावी व सुरक्षित आयुर्वेदिक उपाय लेना चाहेंगे, आज ही हमसे संपर्क करें।
पाचन तंत्र को सुचारू रखने हेतु जीवनशैली
(पेट की खराबी का बचाव कैसे करें?)
- अपनी दिनचर्या नियमित रखें।
- भरपूर पानी पीएं| पानी की कम से कम पीए जाने वाली मात्रा इस प्रकार निर्धारित करें - अपने वजन में 9 का भाग दें व जितना भागफल हो उतने गिलास पानी प्रतिदिन पीएं, जैसे 50 किलो वजन है तो 5.5 गिलास। 1 गिलास = 250 मिलि.।
- रेशेयुक्त खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करें।
- कब्ज दूर करने के लिए सुखे आलुबुखारे या सुखे बैर का ज्यूस, छिलके सहित सेव व नाशपाती, अंगूर, कीवी, ब्लेकबैरी, रास्पबैरी, पत्ता गोभी, ब्रोकोल्ली, ऑलिव ऑयल, एलोवेरा, अलसी तेल का सेवन करें।
- सुबह के समय ताजा दही व छाछ खाएं ( प्रोबायोटिक - अच्छे बैक्टीरिया)।
- ताजा व गर्म भोजन व गर्म तरल जैसे सूप का सेवन करें।
- खानपान में बदलाव ना करें या एकदम न करके धीरे धीरे करें।
- शारीरिक कसरत, ध्यान, योग आदि नियमित करें।
- नित्य क्रियाएं - शौच, लघुशंका आदि अधिक देर तक रोकें नहीं।
- धूम्रपान, शराब, सोडा, कॉफी, नशीले पदार्थ का सेवन न करें।
रेशों की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ
फल, सलाद, साबुत अनाज, चोकर (wheat bran), मेवे, मसूर, मटर, काबुली चना व अन्य दालें।रेशों की कमी वाले खाद्य पदार्थ
- ज्यादा वसा युक्त (चीज, मांस, अण्डा आदि)।
- ज्यादा प्रसंस्कृत भोजन ( सफेद ब्रैड)।
- फास्ट फूड, - चिप्स व अन्य पैकेज्ड फूड।
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