गठिया !!
अब कोई समस्या नहीं, इलाज हो सकता है।
गठिया (Arthritis) क्या होता है?
- शरीर के एक या अधिक जोड़ में सूजन, दर्द व जकड़न को गठिया कहते हैं।
- आयुर्वेद में इसे संधिवात, संधिशोथ या संधिशूल, व आधुनिक चिकित्सा पद्धति में Arthritis कहते हैं।
- शरीर में गठिया के 200 से अधिक प्रकार हो सकते हैं।
- गठिया का दर्द मंद, मध्यम या गंभीर हो सकता है।
- यह रोग तीव्र लक्षणों (acute) अथवा जीर्ण (पुराने - chronic) लक्षणों वाला हो सकता है। प्रायः पुराना ही होता है।
- भारत में इस रोग के प्रतिवर्ष एक करोड़ से ज्यादा मामले सामने आते हैं।
- यह किसी भी उम्र में हो सकता है परन्तु उम्र बढ़ने के साथ साथ एसे विकारों में वृद्धि होती जाती है तथा शारीरिक कार्य क्षमता में क्रमिक कमी होती जाती है।
- गठिया का दर्द प्रायः महिलाओं में अधिक (60%) देखा जाता है।
गठिया के मुख्य लक्षण (Symptoms Of Arthritis)
गठिया के लक्षण |
- दर्द - एक जगह या कहीं भी, कम ज्यादा हो सकता है।
- सूजन - प्रभावित जोड़ के आसपास की चमड़ी लाल, गर्म व सूजी हुई हो सकती है।
- जकड़न - प्रायः सुबह-सुबह जकड़न ज्यादा होती है, बैठते - उठते समय, शारीरिक श्रम के बाद, व कभी-कभी हमेशा जकड़न रहती है।
- चलने फिरने, हिलने डुलने में परेशानी।
- लक्षण समय-समय पर प्रकट होते रहते हैं अथवा लम्बे समय तक या हमेशा रह सकते हैं। लक्षणों का प्रकट होना व तीव्रता गठिया के प्रकार पर निर्भर करता है।
जोड़ (Joint) क्या होता है?
- शरीर को लचीला व चलायमान या गतिशील रखने के लिए कठोर हड्डियाँ आपस में अपेक्षाकृत नरम संरचनाओं द्वारा जुड़ी रहती है, दो हड्डियों के बीच इन संरचनाओं को सम्मिलित रुप में जोड़ या अस्थि संधि (Bone Joint) कहा जाता है।
- दोनों हड्डियों के किनारों पर हड्डियों को ढकती हुई लचीली, पतली व अपेक्षाकृत नरम उत्तकीय संरचना पाई जाती है जिसे उपास्थि या cartilage कहते हैं।
- दोनों तरफ की कार्टीलेज के बीच में गाढा व चिकना तरल पदार्थ होता है जिसे जोड़ द्रव्य या synovial fluid कहते हैं। यह तरल एक गुहा synovial cavity में होता है जो कि चारों तरफ से एक पतली परत या दीवार अस्थिश्लेष्माभित्ती synovial membrne से घिरी हुई रहती है। इन तीनों को मिलाकर synovia कहते हैं।
- ये दोनों - उपास्थियां व तरल मिलकर हड्डियों को आपस में टकराने से बचाते हैं (शक्तिशाली शॉकर की तरह) व जोड़ की हलचल को सुलभ संभव बनाते हैं।
- हड्डियों के किनारे, उपास्थियां व synovia चारों तरफ से एक, मजबूत रेशों / तंतुओं से बने आवरण से घिरे रहते हैं जिसे तंतुक आवरण या fibrous joint capsule कहते है जो कि जोड़ की सुरक्षा करता है।
- इन संरचनाओं उपास्थि, synovia, व तंतुक आवरण में से किसी एक, दो या सब को किसी भी कारण से क्षति पंहुचने पर जोड़ के विकार उत्पन्न होते हैं जो कि अधिकतर गठिया होते हैं।
स्वस्थ जोड़ की सामान्य संरचना |
गठिया के कारण (Causes Of Arthritis)
- आनुवंशिकता ( पूर्वज इतिहास)।
- चोट।
- संक्रमण- बैक्टीरिया, फंगस, वायरस आदि।
- अनियमित चयापचय ( मेटाबोलिज्म)।
- प्रतिरक्षा तंत्र (इम्युनिटी) में खराबी।
- व्यवसाय विशेष- लगातार बैठे रहना, घुटने मोड़े हुए रखना आदि से जोड़ों पर दबाव पड़ना।
- अन्य बीमारियां जैसे - मोटापा व अत्यधिक वजन, हाई बीपी व हृदय रोग, डायबिटीज, गुर्दा रोग, पाचन संबंधी विकार आदि।
- धूम्रपान, अधिक शराब सेवन आदि।
गठिया के प्रकार ( Types Of Arthritis)
मानव शरीर में गठिया 200 से अधिक रूप में देखा जा सकता है। कुछ मुख्य प्रकार निम्नानुसार मिलते हैं -
1. अस्थिसंधिवात (Osteo-Arthritis)
- यह सर्वाधिक मिलने वाला संधि विकार है।
- मुख्यतः एक जोड़ या शरीर के एक तरफ के कुछ जोड़ प्रभावित होते हैं।
- जोड़ को अधिक काम में लेने, चोट आदि की वजह से कार्टीलेज के घिसने, पतला होने या क्षति होने पर अथवा उम्र बढ़ने के साथ जोड़-द्रव्य में कमी आने से हड्डियाँ आपस में टकराने लगती है व बढ़ने लगती है।
- जोड़ की संरचना में विकृति आ जाती है।
- जोड़ में दर्द व जकड़न रहती है, कार्य करने पर या जोड़ पर दबाव पड़ने से दर्द और बढता है।
- जोड़ हिलने पर या गति होने पर रगड़, घर्षण अथवा चटकने की आवाज आती है।
- सुबह के समय जकड़न रहती है।
- दर्द की वजह से नींद आने में परेशानी होती है।
- प्राय: घुटने, कुल्हे, कंधे, कलाई, अंगूठे, स्पाइन अधिक प्रभावित होते हैं।
OSTEO - ARTHRITIS |
2. आमवात (Rheumatoid Arthritis)
- शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र (immune system) में खराबी की वजह से संधिश्लेष्माभित्ति (synovial membrane) में जलन, दर्द व सूजन से हड्डी, कार्टीलेज व जोड़ के अन्य उत्तकों में क्षति पंहुचती है।
- सुबह की जकड़न - एक घंटे से ज्यादा समय के लिए रह सकती है।
- जोड़ों के हिलने-डुलने में परेशानी व दर्द।
- मुख्यतः शरीर के दोनों तरफ के कई जोड़ समान रूप से प्रभावित होते हैं जैसे अंगुलियां, कलाईयां, घुटने, टखने, पांव।
- अन्य लक्षण - छाती में दर्द, श्वांस लेने में तकलीफ, मुंह व आँख में सुखापन, आँखों में जलन, खुजली व स्त्राव; त्वचा के नीचे गांठें, हाथों-पांवों में सुन्न, झनझनाहट व दाह; नींद में कमी आदि।
RHEUMATOID ARTHRITIS |
3. वातरक्त / वृश्चिकवात वेदना (Gout)
यूरिक एसिड (monosodium urate) के सुई जैसे क्रिस्टलों का जोड़ के उत्तकों व द्रव्य में जमने से तीव्र दर्द होना, जोड़ का गर्म होना, लाल होना व सूजन आना वातरक्त अथवा गाउट (gout) कहलाता है।
वातरक्त होने के कारण (Causes Of Gout) -
यूरिक एसिड का,
- या तो शरीर में अधिक बनना (प्यूरिन की अधिकता वाले - समुन्द्री फूड, मांस व रेड वाईन का सेवन, अपच के कारण)।
- या शरीर से बाहर मूत्र के साथ निकलने में कमी होना ( गुर्दा रोग, कुछ दवाइयां जैसे दर्द निवारक)।
अन्य कारक - मोटापा व हायपरटेन्शन।
वातरक्त के लक्षण (Symptoms Of Gout) -
- अचानक तीव्र दर्द, प्रायः रात में, जो कि कंपनयुक्त, कष्टदायी चुभता हुआ हो सकता है, बिच्छू के डंक जैसा - वृश्चिकवात वेदना।
- एक या कुछ जोड़ विशेषकर दूरस्थ जोड़ प्रभावित होते हैं।
- पैर के अंगुठे, घुटने व टखने गर्म, लाल व सूजे हुये या नरम।
- कभी कभी बुखार हो सकता है।
- यह स्थिति लम्बे समय तक सही रह कर पुनः हो सकती है।
- बहुत पुरानी स्थिति में अंगुलियों के किनारे, कान व जोड़ों के आसपास की चमड़ी के नीचे सफेद पदार्थ जमा हो जाता है, कभी कभी इसके फटने से चमड़ी से रिसाव शुरू हो जाता है (अत: सर्जरी जरूरी हो जाती है )।
- पुरूषों में 3.4 से 7 mg/dl, महिलाओ मे 2.4 से 6 mg/dl से अधिक यूरिक एसिड का होना।
सुबह-सुबह 5 - 6 गिलास पानी पीकर गाउट को हमेशा नियंत्रण में रखा जा सकता है।
इसके इलाज हेतु हमसे संपर्क करें अथवा नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें व विशेष छूट का लाभ लें।
E-Mail us4. छदम वातरक्त (Pseudogout)
- इसे CPPD ( Calcium Pyrophosphate Dihydrate Crystal Deposition Disease ) भी कहते हैं। इन क्रिस्टलों का घुटनों में जमने से घुटने अचानक सूजन युक्त, जकड़न युक्त, गर्म व लाल हो जाते हैं तथा तेज दर्द के साथ बुखार भी हो सकता है।
- कारण - शरीर में जरुरत से ज्यादा लोह तत्व का जमा होना (Hemochromatosis), मैग्नीशियम की कमी, पैराथाईरॉइड का अधिक सक्रिय होना या थाईरॉइड की सक्रियता में कमी आदि।
- अधिक उम्र में होती है तथा 85 वर्ष के बाद हर दूसरे व्यक्ति में पाई जाती है।
- जोड़ से फ्ल्यूड निकाल कर जांच की जाती है।
- उपचार हेतु आराम व बर्फ/ ठण्डे सेक करने की सलाह दी जाती है।
5. कमर व गर्दन दर्द ( Back and Neck Pain)
- कमर की कोई भी मांसपेशी, नाड़ी (nerve), डिस्क, स्नायु (ligament), हड्डी या जोड़ के प्रभावित होने पर कमर व गर्दन में दर्द महसूस होता है।
- स्पोन्डायलोसिस - स्पाईन का अस्थिसंधिवात।
- स्लिप डिस्क।
- शरीर में अन्य कहीं का दर्द भी कमर दर्द का कारण बन सकता है।
6. सेप्टिक गठिया / विषाक्त संधिवात (Septic Arthritis)
- एकाधिक जोड़ में बैक्टीरिया, फंगस, वायरस आदि के संक्रमण से जोड़ में अति तीव्र नुकसान होता है जो कि जीवन के लिए घातक भी हो सकता है।
- डायबिटीज, सिकल सेल बीमारी, एडस, प्रतिरक्षा तंत्र को दबाने वाली दवाइयां, बचपन व बुढापा आदि कारक इन संक्रमण को बढावा देते हैं।
- जोड़ों में सूजन, अत्यंत दर्द जो कि हलचल होने पर और बढता है, बुखार आदि लक्षण होते हैं।
- समय पर उपचार से ठीक हुआ जा सकता है।
7. त्वगकाठिन्य (Scleroderma)
- इस बीमारी समूह में शरीर के संयोजी उत्तक (connective tissue) प्रभावित होते हैं, तथा चमड़ी पर कठोर व सुखी पपड़ियां बन जाती है, कभी कभी आंतरिक अंग व महीन रक्त नलिकाएं भी प्रभावित होती है।
- 30 - 50 की उम्र में अधिक होती है।
- Lupus बीमारी के साथ भी हो सकती है।
कारण - अज्ञात।
लक्षण -
- ठण्डे मौसम में हाथ-पांव की अंगुलियां नीली या सफेद हो जाती है; अंगुलियों, हाथों, कलाई व चेहरे की चमड़ी कठोर व खींची हुई; चमड़ी के नीचे सफेद टूथपेस्ट जैसा पदार्थ जम जाता है जो कि कभी कभी बाहर भी आ जाता है; अंगुलियों के किनारों पर छाले व घाव; कलाई, अंगुलियों व अन्य जोड़ों में दर्द, सूजन व जकड़न; पैरों में सुन्न व दर्द; बालों का झड़ना।
- पेट की तकलीफ - कुछ खाने के बाद आफरा, कब्ज, दस्त, निगलने में परेशानी, इसोफेजियल रिफ्लेक्स या हर्ट बर्न।
- सुखी खांसी, सांस में तकलीफ; हृदय व गुर्दों का कमजोर होना।
8. लुपुस ( SLE - Systemic Lupus Erythematosis)
- यह एक ऑटो-इम्यून रोग है, मतलब शरीर में स्वयं की कोशिकाओं के प्रति एंटीबॉडी बनने लग जाती है जिससे पूरे शरीर में दाह (जलन) व उत्तकों का नुकसान होता है।
- यह तकलीफ कभी गंभीर तो कभी ठीक हो जाती है।
- किसी भी उम्र में हो सकती है, परन्तु 15 - 45 की उम्र में ज्यादा होती है।
- कारण - अज्ञात। आनुवंशिकता, वातावरण या हार्मोन कारक जिम्मेदार हो सकते हैं।
- लक्षण - जोड़ों में दर्द, सूजन; अनियमित बुखार; चेहरे, नाक व गाल पर तितली जैसे लाल चकते या रंग बदला हुआ; तनाव व ठण्ड में अंगुलियां पीली या बैंगनी; बाल झड़ना; धूप सहन नहीं होती; खून की कमी, थकान; डिप्रैशन, याददाश्त में कमी व समस्याओं के बारे में सोचते रहना; मुंह में छाले; बार-बार गर्भपात; फेफड़ों व गुर्दों की अनियमितता व अन्य अंगों की समस्याएं।
- एलोपैथी में इसका उपचार नहीं है पर आयुर्वेद में है, जानने के लिए हमसे संपर्क करें अथवा नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें व विशेष छूट का लाभ लें । E- Mail us
9. अस्थि-क्षरण (Osteoporosis)
कैल्शियम, विटामिन-डी की कमी व अन्य कारणों से हड्डियाँ कमजोर व छिद्रमय हो जाती है, मुख्यतः वृद्धावस्था में।
हड्डियों में दर्द, बार बार फ्रैक्चर होना आदि लक्षण मिलते हैं।
10. Fibromyalgia
अज्ञात कारणों से मांस पेशियों में दर्द, जकड़न, जबडों में दर्द व हाथ-पांव में सुन्न व झनझनाहट व कई अन्य लक्षण मिल सकते है।
गठिया की पहचान (Diagnosis)
विभिन्न प्रकार के गठिया की पहचान व जांच चिकित्सक से ही करवाएं। चिकित्सक लक्षण, इतिहास, शारीरिक परीक्षण, रक्त जांच, एक्स रे, व अन्य तकनीकों से इसका पता लगाते हैं।
गठिया का उपचार (Treatment of Arthritis)
गठिया स्वतः भी ठीक हो सकता है परन्तु इसे नजरअंदाज न करें क्योंकि आगे का जीवन काफ़ी कष्टमय हो सकता है अत: इसका पता चलते ही शीघ्र उपचार शुरू कर देना चाहिए, वैसे भी आजकल गठिया लाइलाज नहीं है। आयुर्वेद की मदद से इसे ठीक किया जा सकता है।
गठिया का इलाज निम्न प्रकार से किया जाता है:-
A. औषधीय उपचार
B. फिजीयोथैरेपी
C. शल्य क्रिया
D. स्व-नियंत्रण
A. औषधीय
निम्न एलोपैथिक, आयुर्वेदिक व होम्योपैथिक औषधियां गठिया के उपचार हेतु प्रयोग होती है:-
(1). एलोपैथी दवाएं:-
- दर्द निवारक (Pain-Killers) - NSAIDs जैसे Paracitamol, Diclofenac, Tremadol आदि व Narcotics जैसे Oxycodone, hydrocodone आदि।
- दाहनाशक (Anti-inflammatory) - स्टीरॉइड (Prednisolone, Cortisone, Dexamethasone, Isoflupredone आदि ) - नॉनस्टीरॉइडल (NSAIDs - Ibuprofen, Naproxane, Piroxicam, Etoricoxib आदि)।
- प्रतिक्षोभण (Counterirritant) जैल, क्रीम या मल्हम जैसे मैन्थोल, ये जलन करके रक्त संचरण बढाते हैं।
- Anti-Rheumatic Drugs - Methotrexate, Hydrxychloroquine आदि।
- Biologics - Etanercept, Infliximab आदि।
एलोपैथिक दवाओं से गठिया के लक्षणों को दबाया जा सकता है मगर दवा बन्द करने पर पुनः तकलीफ हो जाती है, अतः हमेशा लेनी पड़ती है, साथ ही इनके दुष्प्रभाव मुफ्त में मिलते हैं।
(2). आयुर्वेदिक औषधियां:-
- आयुर्वेद में सलाय गुग्गुल या सल्लाकी (Boswelia), लौंग (curcuma), सहजन (Moringa), पुनर्नवा, हल्दी, लहसुन, अदरक/सुंठी, काली मिर्च आदि से बने उत्पाद न केवल दर्द, जलन, सूजन कम करते हैं बल्कि प्रतिरक्षा तंत्र को भी मजबूत व शरीर के अनुकूल बनाते हैं।
- गंधपुड़ा तेल, देवदारु तेल, कायापुट्टी तेल, पुदीना तेल, रसना आदि की जोड़ के आसपास की त्वचा पर हल्की मालिश करने से एकबारगी तुरन्त आराम मिलता है।
- इनके लगातार प्रयोग से गठिया को समूल नष्ट किया जा सकता है।
- इन औषधियों का शरीर में कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है, अपितु अन्य व्याधियां जैसे बीपी, अस्थमा, गुर्दों की बीमारी आदि भी बोनस के रुप में ठीक हो सकती है।
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(3). होम्योपैथिक दवाएं:-
एकोनिटम, अर्निका, बेलाडोना, ब्रायोनिया, कैल्केरिया फॉस, लेडम, पल्सेटिला, रस टॉक्स, एपिस, कैल्केरिया कार्ब, कॉलोफायलम, कॉस्टीकम आदि दवाएं गठिया के लक्षणों को कम कर सकती हैं। सुरक्षित व सस्ती भी होती है।
B. फिजीयोथैरेपी:-
a). हाइड्रोथैरेपी या एक्वा थैरेपी:-
गर्म पानी भरे टब या पूल में कसरत की मदद से पुराने दर्द को ठीक किया जाता है।
b). शारीरिक क्रियाएं:-
अपनी रूचि की कुछ शारीरिक क्रियाएं नियमित करने से मांसपेशियों में रक्त संचार बढ़ता है जिससे दर्द में कमी व लचीलापन बढ़ता है। जैसे - पैदल चलना, तैराकी, नृत्य, साईकलिंग आदि।
हालांकि शुरूआत में दर्द बढ सकता है परन्तु व्यवस्थित व लगातार करने से आराम मिलना निश्चित है।
c). विशेष व्यायाम/स्ट्रैचिंग:-
गठिया से पीड़ित अधिकांश लोगों के लिए सुबह का समय सबसे कठिनाई वाला होता है, जकड़े हुए दर्द युक्त जोड़ों की वजह से बिस्तर से उठना बहुत मुश्किल होता है।
ऐसे में यदि कुछ आसान से व्यायाम या स्ट्रैच हर रोज किये जाएं तो बहुत राहत मिलती है:-
(i). हाथों के स्ट्रैच:-
Towel squeezing:-
- हथेली में छोटा तौलिया या बड़ा स्पंज रखें व 5 सेकंड के लिए दबाकर रखें व छोड़ दें।
- ऐसा दोनों हाथों के साथ 10-15 बार दोहराएं।
Extension of fingers:-
- एक रबड़ बैंड लें व उसे हाथ की पांचों अंगुलियों के किनारों के नीचे लपेट दें।
- अब धीरे-धीरे अंगुलियों को फैलाएं व 5 सेकंड तक जितना फैला कर रख सकें, रखें फिर छोड़ दें।
- दोनों हाथों के लिए 10 बार दोहराएं।
(ii). बाजु, कंधे व गर्दन स्ट्रैच
Serratus Punch:-
यह बिस्तर पर करें।
- सिर के नीचे तकिया रख कर सीधे लेटें।
- घुटने मोड़ कर रखें।
- हथेलियां एक दूसरे के सामने रखते हुए दोनों हाथों को हवा में छत की ओर उठाएं।
- सिर तकिए पर व हाथ सीधे रखते हुए दोनों कंधों को बिस्तर से ऊपर छत की तरफ उठाएं व 30 सेकंड तक रखें तथा धीरे धीरे नीचे लाएं।
- यह क्रिया 2 से 3 बार दोहराएं।
SERRATUS PUNCH STRETCH FOR ARTHRITIS |
Corner Stretch:-
- कमरे के एक कोने या दरवाजे से 2 फुट दूर खड़े होकर कंधे की उंचाई पर दोनों हथेलियों को दीवार पर रखें।
- कोहनियां मोड़ते हुए 30 सेकंड तक शरीर का भार कोने की तरफ रखें व धीरे धीरे वापस आएं।
- यह क्रिया 2 से 3 बार दोहराएं।
CORNER STRETCH FOR ARTHRITIS |
Posterior Shoulder and Back Stretch:-
- सीधे खड़े होकर दायां हाथ सीधा रखते हुए धीरे धीरे छाती के दूसरी तरफ ले जाएं।
- दायीं कोहनी को बाएं हाथ से पकड़ते हुए आराम से शरीर की ओर 30 सेकंड खींचे रखें व धीरे धीरे छोड़े।
- अब यही क्रिया बाएं हाथ से दोहराएं।
- प्रत्येक हाथ के लिए 2 से 3 बार दोहराएं।
POSTERIOR SHOULDER & BACK STRETCH FOR ARTHRITIS |
(iii). कमर, कुल्हे (hips) व घुटनों (knee) के स्ट्रैच:-
इन स्ट्रेच को बिस्तर या फर्श पर करें।
Hamstring Stretch:-
- कमर के बल लेटते हुए बायां घुटना मोड़े व बायां पाँव बिस्तर पर सीधा रखें।
- दायां पैर मोड़ कर दोनों हाथ दायीं जंघा के पीछे रखते हुए दाएं पाँव को उपर हवा में उठाएं व जितना कर सकें , सीधा करें।
- अब पांव को हाथों से छाती की तरफ खींचते हुए 30 सेकंड तक रखें व धीरे धीरे छोड़ें।
- यही क्रिया बाएं पैर के साथ करें व दोनों पैरों के लिए 2 से 3 बार दोहराएं।
HAMSTRING STRETCH FOR ARTHRITIS |
Single knee to chest stretch:-
- कमर के बल लेटते हुए दोनों घुटने मोड़ें व पाँव बिस्तर पर सीधे रखें।
- दोनों हाथ दाएं घुटने के पीछे रखते हुए आराम से छाती की तरफ खींचे व 30 सेकंड रखते हुए धीरे धीरे छोड़ें।
- बाएं घुटने से बदलते हुए 2-3 बार दोहराएं।
SINGLE KNEE TO CHEST STRETCH FOR ARTHRITIS |
Piriformis Stretch:-
- कमर के बल लेटते हुए दोनों घुटने मोड़ें व पाँव बिस्तर पर सीधे रखें।
- दाएं टखने को बाएं घुटने पर टिकाएं।
- दोनों हाथ से बाएं घुटने को पकड़ कर आराम से छाती की तरफ खींचे व 30 सेकंड रख कर धीरे धीरे छोड़ें।
- पाँव बदलें।
- 2-3 बार दोहराएं।
d). पट्टियां, सेक व मालिश:-
प्रैशर बैन्डेजिंग:-
- साधारण कॉटन पट्टी या गर्म पट्टी से हाथ-पांव के जोड़ों को सोते समय कस कर बांधें व सुबह उठ कर खोल दें।
- ऐसा सप्ताह में दो या तीन दिन करें, बहुत आराम मिलेगा।
सेक / सिकताव:-
गर्म व ठण्डे दो तरह के सेक किये जाते हैं।
- दर्द पुराना हो तथा त्वचा ठण्डी हो तब गर्म सेक (गर्म पानी, मिट्टी, नमक, कपड़ा आदि से) किया जाता है जिससे खून की सप्लाई बढती है जो कि हानिकारक तत्वों को हटाने व जोड़ में मरम्मत कार्य करने में तेजी लाता है।
- दर्द ताजा हो व त्वचा गर्म, सूजी हुई या लाल हो उस स्थिति में बर्फ या ठण्डे पानी का सेक करें ताकि जलन, सूजन करने वाले रसायन निष्क्रिय हों व दर्द कम हो। ऐसी स्थिति में गर्म सेक कभी न करें वरना दर्द बढेगा।
मालिश (Massage):-
यह भी पुराने दर्द में रक्त संचरण बढाने हेतु की जाती है।
औषधीय तेल, नारियल तेल, सरसों तेल आदि को हल्का गर्म करके अंगुलियों के दबाव से आवश्यकतानुसार प्रभावित जोड़ के आसपास या पूरे शरीर की मालिश की जाती है एवं आधा घंटे बाद गुनगुने पानी से स्नान भी किया जा सकता है।
e). एक्युप्रैशर या एक्युपंक्चर:-
विशेषज्ञ की मदद से इस विधि का प्रतिदिन उपयोग करके दर्द में राहत ले सकते हैं।
f). व्यावसायिक थैरेपी (Occupational Therapy):-
इसमें रोजमर्रा के अपने कार्यों को इस तरह पुनः व्यवस्थित करें जिससे कि जोड़ों को और नुकसान न पंहुचे व शरीर की थकान में कमी आए।
अपने अनुकूल विशेष उपकरण, साधन, तरीके (बैठने की मुद्रा, विशेष कुर्सी आदि) अपनाएं।
C. शल्य क्रिया (Surgery)
- जब गठिया का दर्द एलोपैथिक दवाओं से ठीक नहीं हो पाता है, तब शल्य क्रिया को अंतिम विकल्प के तौर पर आजमाया जाता है। हालांकि, यह विधि भी आंशिक सफलता ही दे पाती है, तथा कई खतरे भी रहते हैं।
- इसमें दर्द ग्रसित जोड़ को हटा कर धातु व प्लास्टिक से बने कृत्रिम जोड़ का सर्जरी द्वारा रोपण किया जाता है जैसे कुल्हा जोड़ प्रत्यारोपण, घुटना प्रत्यारोपण आदि।
D. स्व: प्रबन्धन (Self Management)
- शारीरिक रूप से सक्रिय रहें, वजन कम करें, उचित आराम करें व आवश्यक नींद लें।
- नींद लेने से ठीक पहले चाय-कॉफी न पीयें, कसरत न करें, स्क्रीन (टीवी, मोबाईल) पर समय न बिताएं।
- जोड़ों को चोट से व शरीर को थकान से बचाएं।
- एक ही जगह व स्थिति में लगातार नहीं बैठें, थोड़े थोड़े अंतराल पर हिलते-डुलते रहें।
- नियमित शारीरिक जांचें करवाएं।
- स्वास्थ्य वर्द्धक संतुलित आहार लें।
पथ्य (क्या खाएं):-
एंटीऑक्सीडेंट युक्त खाद्य पदार्थ लें - सुखे मेवे, फल-सब्जियां, बीन्स (दालें), ओलिव आईल, साबुत अनाज आदि।
अपथ्य (क्या ना खाएं):-
टमाटर, रिफाईंड फूड (चीनी, तेल), डिब्बाबंद व प्रौसेस्ड फूड, शराब, धूम्रपान आदि से बचें।
उचित आयुर्वेदिक औषधी, फिजीयोथैरेपी व स्व: प्रबन्धन को अपनाकर किसी भी प्रकार का गठिया ठीक किया जा सकता है।
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